________________
चारिका प्रविष्ट-निवृत्तं भिक्षु-विषयक निरूपण
८५ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
तथा उसका अवग्रह भी पुर्वानुज्ञापित रहता है। उसका यथाकाल - कल्प पर्यन्त क्रियाशील रहना पुर्वानुज्ञापित होता है।
११९. चारिका प्रविष्ट भिक्षु चार-पांच रात के पश्चात् स्थविरों को देखे - मिले तो वह पुनः आलोचना करे, पुनः प्रतिक्रमण करे एवं पुनः दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त में उपस्थापित हो।
• संयम की रक्षा के लिए वह दूसरी बार अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त करे। उसे स्थविरों को संबोधित कर यों कहना कल्पता है - हे भगवन्! मुझे मित - परिमित या नियमानुबद्ध अवग्रह, यथाकाल - यथाकल्प कार्य तथा शाश्वत, नित्य, निश्चित्त आचार प्रवण क्रियाओं में व्यावर्तित होने की, उन्हें यथाविधि सदा करते रहने की अनुज्ञा दें।
१२०. चारिका निवृत्त भिक्षु चार-पाँच रात तक की अवधि के अन्तर्गत स्थविरों को देखे, उनसे मिले तो उस भिक्षु द्वारा क्रीयमाण आलोचना, प्रतिक्रमण वही - पुर्वानुरूप रहते हैं
और उसका अवग्रह भी पुर्वानुज्ञापित रहता है। उसका यथाकाल - कल्प पर्यन्त क्रियाशील रहना पुर्वानुज्ञापित होता है।
१२१. चारिका निवृत्त भिक्षु चार-पाँच रात की अवधि के पश्चात् स्थविरों को देखे - मिले तो वह पुनः आलोचना करे, पुनः प्रतिक्रमण करे तथा पुनः दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त में उपस्थापित हो। - संयम की रक्षा के लिए वह दूसरी बार अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त करे। उसे स्थविरों को संबोधित कर यों कहना कल्पता है - हे भगवन्! मुझे मित - परिमित या नियमानुबद्ध अवग्रह, यथाकाल - यथाकल्प कार्य तथा शाश्वत, नित्य, निश्चित आचार प्रवण क्रियाओं में व्यावर्तित होने की उन्हें यथाविधि सदा करते रहने की अनुज्ञा दें।
विवेचन - इन सूत्रों में चारिका प्रविष्ट और चारिका निवृत्त भिक्षु के दो प्रकार के व्यवहार का वर्णन है। यदि वह चार-पाँच रात के अन्तर्गत ही स्थविरों से मिलता है तो उसके आलोचना प्रतिक्रमण आदि चारित्र-विषयक दैनिक क्रियोपक्रम पूर्ववत् रहते हैं। अवग्रहविषयक अनुज्ञा भी पूर्वानुरूप होती है, क्योंकि उसकी भावना विपर्यस्थ नहीं होती। किन्तु चार-पाँच रात्रि तक जो स्थविरों से नहीं मिलता, उसकी भावना में विपर्यास की आशंका रहती है। उसी कारण उसे दीक्षा-छेद या परिहार तप रूप प्रायश्चित्त में उपस्थापित होना कहा गया है। साथ ही साथ स्थविरों से उसे पुनः अनुज्ञा प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org