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उपस्थापन विधि AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA* . आयरियउवज्झाए असरमाणे परं चउरायपंचरायाओ कप्पागं भिक्खुंणो उवट्ठावेइ कप्पाए, अत्थि या इत्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, णत्थि से केइ छए वा परिहारे वा, णत्थि या इत्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छए वा परिहारे वा॥११४॥
आयरियउवज्झाए सरमाणे वा असरमाणे वा परं दसरायकप्पाओ कप्पागं भिक्खं णो उवट्ठावेइ कप्पाए, अस्थि या इत्थ से केइ माणणिज्जे कप्याए, णत्थि से केइ छए वा परिहारे वा, णत्थि या इत्थ से केइ माणणिज्जे कप्पाए, संवच्छरं तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा उवज्झायत्तं वा पवत्तयत्तं वा थेरत्तं वा गणित्तं वा गणहरत्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उहिसित्तए॥११५॥
कठिन शब्दार्थ - सरमाणे - स्मरण होते हुए भी, परं - आगे या अधिक, चउरायपंचरायाओ - चार-पाँच रात से, कप्पागं - कल्पाक - छेदोपस्थापनीय चारित्र या बड़ी दीक्षा के योग्य, उवट्ठावेइ - उपस्थापित करे - बड़ी दीक्षा दे, माणणिजे - माननीयआदरणीय या पूजनीय, अत्थि - है, या - और, असरमाणे - स्मरण न हो, दसरायकप्पाओदस रात का समय बीत जाने पर भी, संवच्छरं - संवत्सर - वर्ष, आयरियत्तं - आचार्यत्य - आचार्य पद, उवज्झायत्तं - उपाध्यायत्व - उपाध्याय पद, पवत्तयत्तं - प्रवर्तकत्व - प्रवर्तक पद, थेरत्तं - स्थविरत्व - स्थविर पद, गणित्तं - गणित्व - गणी पद, गणहरत्तं - गणधरत्व - गणधर पद, गणावच्छेइयत्तं - गणावच्छेदकत्व - गणावच्छेदक पद, उदिसित्तएउद्दिष्ट करना - देना।
भावार्थ - ११३. आचार्य या उपाध्याय स्मरण होने पर भी बड़ी दीक्षा के योग्य भिक्षु को चार-पाँच रात का समय बीत जाने पर भी छेदोपस्थापनीय चारित्र में स्थापित न करें - बड़ी-दीक्षा न दें, यदि तब उस बड़ी दीक्षा योग्य भिक्षु के कोई पूज्य पुरुष - पिता, पितृव्य (चाचा), ज्येष्ठ भ्राता आदि के बड़ी दीक्षा होने में देर हो तब आचार्य या उपाध्याय को दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त नहीं आता।
यदि बड़ी दीक्षा योग्य भिक्षु के कोई पूज्य - आदरणीय पुरुष वैसी स्थिति में न हो तब आचार्य या उपाध्याय को चार-पाँच रात बीत जाने पर भी बड़ी दीक्षा न देने पर दीक्षा-छेद या परिहार-तप रूप प्रायश्चित्त आता है। "
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