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व्यवहार सूत्र - चतुर्थ उद्देशक
८२ . xxxkakkakakakakakAAAAAAAAAAwaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaat चारित्र के साथ यदि प्रशस्त ज्ञान हो तो चारित्र और अधिक दीप्त, शोभित होता है। वैसे भिक्षु जन-जन में धर्म-प्रसार, अध्यात्म-प्रभावना के द्वारा लोक-कल्याण का महान् कार्य कर सकते हैं।
यदि किसी गण में रहते हुए जिज्ञासु, विशिष्ट ज्ञानार्थी, श्रुतार्थी भिक्षु को ऐसा प्रतीत हो कि किसी अन्य गण में बहुश्रुत, विशिष्ट श्रुतधर या उत्कृष्ट विद्वान् भिक्षु हैं तो वह उच्च अध्ययन हेतु अपने गण को छोड़कर दूसरे गण में जा सकता है, उसकी उपसंपदा या निःश्रय में रह सकता है।
यदि किसी भिक्षु ने वैसा किया हो, ज्ञानवृद्धि हेतु अन्य गण में रह रहा हो तो यह आवश्यक है कि उसकी निष्ठा, श्रद्धा उस गण के साथ जुड़ी रहे। उस गण में जो सर्वोत्तम रत्नाधिक हो, दीक्षा-पर्याय में सबसे बड़े हों, उनके निःश्रय या आध्यात्मिक नेतृत्व को वह आदरपूर्वक स्वीकार किए रहे। ___ उस गण में जो सबसे अधिक श्रुतज्ञ हों, सबसे बड़े विद्वान् हों, उनके निर्देशन में, सान्निध्य में, ज्ञानानुशीलन में अभिरत रहे, उनके वचनों का सर्वथा अनुसरण करे। . इस सूत्र में अपने पूर्ववर्ती गण के साधर्मिक भिक्षु द्वारा पूछे गए प्रश्नों के श्रुताध्यायी भिक्षु द्वारा जो उत्तर दिए गए हैं, वे उसके ऐसे ही श्रद्धामय एवं निष्ठामूलक भाव के .
सूचक हैं।
सम्मिलित विहरण-गमन-विषयक विधि-निषेध बहवे साहम्मिया इच्छेज्जा एगयओ अभिणिचारियं चारए, णो ण्हं कप्पड़ थेरे अणापुच्छित्ता एगयओ अभिणिचारियं चारए, कप्पइ ण्हं थेरे आपुच्छित्ता एगयओ अभिणिचारियं चारए, थेरा य से वियरेजा एवं)वण्हं कप्पइ एगयओ अभिणिचारियं चारए, थेरा य से णो वियरेज्जा एव ण्हं णो कप्पइ एगयओ अभिणिचारियं चारए, जं तत्थ थेरेहिं अविइण्णे अभिणिचारियं चरंति, से संतरा छेए वा परिहारे वा ॥११७॥ __ कठिन शब्दार्थ - एगयओ - एक साथ, अभिणिचारियं - अभिनिचारिका - एक साथ मिलकर चलना, जाना, चारए - चले - आचरण करे, एवं - इस प्रकार, अविइण्णे - अनुज्ञात - अनुज्ञा दिये जाने पर, वियरेज्जा - आज्ञा प्रदान करे।
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