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व्यवहार सूत्र - तृतीय उद्देशक
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णिरुद्धवासपरियाए समणे णिग्गंथे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उहिसित्तए समुच्छेयकप्पंसि, तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अवट्टिए, से य अहिग्जिस्सामित्ति अहिज्जेजा, एवं से कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उहिसित्तए, से य अहिज्जिस्सामित्ति णो अहिज्जेज्जा, एवं से णो कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥७९॥
कठिन शब्दार्थ - णिरुद्धपरियाए - निरुद्धपर्याय - अत्यंत अल्प संयम पर्याय अर्थात् दीक्षा के प्रथम दिन, तदिवसं - उसी दिन, तहारूवाणि - तथारूप - वैसे या उस प्रकार के, कुलाणि - कुल - वंश, कडाणि - कृत - सत्कृतियुक्त, पत्तियाणि - प्रतीतियोग्य, थेज्जाणि - स्थिरतायुक्त, वेसासियाणि - विश्वसनीय - विश्वास योग्य, संमयाणि - सम्मत - सम्मान या प्रतिष्ठा युक्त, सम्मुइकराणि - समुदित - प्रमुदित करने वाले, अणुमयाणि - अनुमत - धार्मिक अनुकूलता युक्त, बहुमयाणि - बहुमत - अनेक जनों द्वारा मान्य, भवंति - होते हैं, तेहिं - उन, णिरुद्धवासपरियाए - निरुद्धवर्षपर्याय - अल्पवर्षीय दीक्षा-पर्याय युक्त, समुच्छेयकप्पंसि - समुच्छेदकल्प - उसके आचार-कल्प का अध्ययन करना कुछ अवशिष्ट हो, देसे - अंशतः, अहिग्जिस्सामित्ति - अध्ययन पूरा कर लूंगा, अहिज्जेज्जा - अध्ययन पूर्ण कर ले।
भावार्थ - ७८. निरुद्धपर्याय - अत्यंत अल्प संयम पर्याय अर्थात् दीक्षा के प्रथम दिन श्रमण, निर्ग्रन्थ को उसी दिन, जिस दिन उसने दीक्षा ली हो, आचार्य या उपाध्याय का पद देना कल्पता है।
हे भगवन्! ऐसा क्यों कहा जाता है? __ स्थविरों के तथारूप सत्कृतियुक्त, प्रतीति योग्य, स्थिरता युक्त, विश्वसनीय, सम्मत, प्रमोदकारक, अनुमत - धार्मिक अनुकूलता युक्त, बहुमत - बहुजन सम्मानित कुल होते हैं, उन सत्कृतिमय, प्रतीति योग्य, स्थिरतायुक्त, विश्वसनीय, सम्मत, प्रमोदकारक, अनुमत - धार्मिक अनुकूलता युक्त, बहुमत - बहुजन सम्मानित कुलों से दीक्षित निरुद्ध पर्याय श्रमण, निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य या उपाध्याय का पद देना कल्पता है। .
७९. निरुद्ध वर्ष पर्याय श्रमण, निर्ग्रन्थ को, जिसके आचार कल्प का अध्ययन करना कुछ अवशिष्ट हो और वह यह संकल्प करे कि मैं अवशिष्ट अध्ययन पूर्ण कर लूंगा, तदनुसार पूर्ण कर ले तो उसे आचार्य या उपाध्याय का पद देना कल्पता है।
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