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५९ संयम को छोड़कर जाने वाले के लिए प्रद-विषयक विधि-निषेध **********aaaaaaaaaa**AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA* उवरयस्स पडिविरयस्स णिव्विकारस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥८९॥
आयरियउवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं अणिक्खिवित्ता ओहाएजा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥९॥
आयरियउवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं णिक्खिवित्ता ओहाएजा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए ‘वा धारेत्तए वा, तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स णिव्विकारस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उदिसित्तए वा धारेत्तए वा॥९१॥
कठिन शब्दार्थ - ओहायइ - चला जाता है, ओहाएजा - चला जाए।
भावार्थ - ८७. जो साधु गण से निकल कर चला जाता है तो उसे तीन वर्ष तक . आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना नहीं कल्पता है। ,
तीन वर्ष व्यतीत होने के अनन्तर चौथे वर्ष में प्रविष्ट हो जाने पर यदि वह संयम में स्थित, उपशान्त, असंयम से उपरत, प्रतिविरत एवं विकार रहित हो जाए तो उसे आचार्य . यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना कल्पता है।
८८. 'गणावच्छेदक' गणावच्छेदक पद से निष्क्रान्त - पृथक् हुए बिना यदि संयम का उल्लंघन करे तो जीवनभर के लिए उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना नहीं कल्पता।
८९. 'गणावच्छेदक' गणावच्छेदक पद से निष्क्रान्त होकर - हटकर यदि संयम से हट जाए तो उस कारण उसको तीन वर्ष तक आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना नहीं कल्पता।
तीन वर्ष व्यतीत होने के अनन्तर चौथे वर्ष में प्रविष्ट हो जाने पर यदि वह संयम में स्थित, उपशान्त, असंयम से उपरत, प्रतिविरत तथा विकार शून्य हो जाए तो उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना, धारण करना कल्पता है।
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