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आचार्य आदि के सहवर्ती निर्ग्रन्थों की संख्या raakikikikikikikikikattraitiatkarraikikikikikikikikakkar***
भावार्थ - ९९. हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में आचार्य अथवा उपाध्याय को एकाकी विहार करना - विचरना नहीं कल्पता।
१००. हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में आचार्य अथवा उपाध्याय को अपने सहित दो साधुओं के रूप में - अपने अतिरिक्त एक और साधु साथ लिए हुए विहार करना कल्पता है।
१०१. हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में गणावच्छेदक को आत्मद्वितीय - अपने सहित दो के रूप में विहार करना नहीं कल्पता।
१०२. हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में गणावच्छेदक को अपने सहित तीन साधुओं के रूप में - अपने अतिरिक्त अन्य दो अन्य साधुओं को साथ लिए हुए विहार करना कल्पता हैं।
१०३. वर्षा ऋतु में आचार्य अथवा उपाध्याय को अपने सहित दो साधुओं के रूप में - अपने अतिरिक्त एक अन्य साधु को साथ लिए हुए वास करना - रहना नहीं कल्पता।
. १०४. वर्षा ऋतु में आचार्य या उपाध्याय को आत्मतृतीय - अपने सहित तीन साधुओं के रूप में अथवा अपने अतिरिक्त अन्य दो साधुओं का साथ लिए हुए वास करना कल्पता है।
१०५. वर्षा ऋतु में गणावच्छेदक को आत्मतृतीय - अपने सहित.तीन साधुओं के रूप में वास करना नहीं कल्पता। .... १०६. वर्षा ऋतु में गणावच्छेदक को आत्मचतुर्थ - अपने सहित चार साधुओं के रूप में अथवा अपने अतिरिक्त तीन अन्य साधुओं को साथ लिए हुए वास करना कल्पता है।
१०७. हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में अनेक आचार्यों अथवा उपाध्यायों को अपनी नेत्राय के एक-एक साधु को साथ लिए हुए तथा अनेक गणावच्छेदकों को अपनी नेश्राय के दो-दो साधुओं को साथ लिए हुए ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडंब, पत्तन, द्रोणमुख, आश्रम, संबाध और सन्निवेश में विहार करना कल्पता है।
१०८. वर्षा ऋतु में अनेक आचार्यों अथवा उपाध्यायों को अपनी नेश्राय के दो-दो साधुओं को साथ लिए हुए और अनेक गणावच्छेदकों को अपनी नेश्राय के तीन-तीन साधुओं को साथ लिए हुए ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडम्ब, पत्तन, द्रोणमुख, आश्रम, संबाध एवं सन्निवेश में वास करना - रहना कल्पता है।
विवेचन - भारतीय ज्योतिष में एक वर्ष को - १. वसन्त - चैत्र-वैशाख, २. ग्रीष्म - ज्येष्ठ-आषाढ ३. प्रावृट् - वर्षा - श्रावण-भाद्रपद, ४. शरद् - आश्विन-कार्तिक, ५. हेमन्त -
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