________________
.५२
. व्यवहार सूत्र - तृतीय उद्देशक kakakArAAAAAAAAAAAAAAAAAAAdaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa*********
- कठिन शब्दार्थ - णवडहरतरुणस्स - नवदीक्षित बालक या युवक का, वीसंभेज्जामृत्यु को प्राप्त हो जाए, होत्तए - होना - रहना, पुव्वं - पूर्व, उहिसावेत्ता - निश्रा - आश्रय लेकर, दुसंगहिए - द्विसंगृहीत - दो द्वारा निर्देशित, णिग्गंथीए - साध्वी, णवडहरतरुणीए - नवदीक्षित, बालिका या युवती, पवत्तिणी य - प्रवर्तिनी के, तिसंगहियात्रिसंगृहीत - तीन द्वारा निर्देशित। . भावार्थ - ८०. नवदीक्षित, बालक या युवा निर्ग्रन्थ - भिक्षु को आचार्य या उपाध्याय के दिवंगत हो जाने पर, आचार्य या उपाध्याय के बिना रहना नहीं कल्पता।
उसे पहले आचार्य के तथा बाद में उपाध्याय के नेश्राय - अधीनत्व में या निर्देशन में रहना कल्पता है।
हे भगवन्! ऐसा क्यों कहा जाता है - ऐसा कहने का क्या आशय है? श्रमण, निर्ग्रन्थ आचार्य और उपाध्याय इन दो के निर्देशन में ही रहते हैं।
८१. नवदीक्षित बालिका या युवती निर्ग्रन्थी - साध्वी को आचार्य, उपाध्याय या प्रवर्तिनी का स्वर्गवास हो जाने पर उसे आचार्य, उपाध्याय या प्रवर्तिनी के बिना रहना नहीं कल्पता। ___उसे पहले आचार्य के, तत्पश्चात् उपाध्याय के और तदनन्तर प्रवर्तिनी के निश्रय - अधीनत्व या निर्देशन में रहना कल्पता है।
हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है - ऐसा कहने का क्या आशय है? श्रमणी, निर्ग्रन्थी आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी - इन तीन के निर्देशन में रहती है।
विवेचन - जीवन में किसी भी क्षेत्र में अनुभव का बहुत महत्त्व है। अनुभव से व्यक्ति परिपक्व बनता है। परिपक्वता से जीवन में स्थिरता आती है, क्योंकि अनुभवाप्न परिपक्वता से व्यक्ति जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखता है। अत एव वह किसी भी स्थिति में अस्थिर नहीं होता, दृढ बना रहता है। ___इस सूत्र में कहा गया है - नवदीक्षित बालक या अल्पवयस्क साधु को आचार्य और उपाध्याय के निर्देशन में रहना आवश्यक है। क्योंकि उन्हें तब तक जीवन का विशेष अनुभव प्राप्त नहीं होता। आचार्य आदि बड़ों की छत्र-छाया में रहते हुए वे अपने साधनामय जीवन में सुविधा पूर्वक अग्रसर होते रहते हैं। चारित्राराधना और ज्ञानाराधना में वे उत्तरोत्तर विकासशील रहते हैं। - नवदीक्षित, अल्पवयस्क या तरुणावस्था में विद्यमान साध्वी के लिए आचार्य, उपाध्याय के अतिरिक्त प्रवर्तिनी के निर्देशन में रहने का जो उल्लेख किया गया है, वह विशेष
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org