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अब्रह्मचर्य-सेवी को पद देने के संदर्भ में विधि-निषेध kakakakakakakkakakakakakakakakakakakakakakaaaaaaaaaaaaaaaaaa* तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उहिसित्तए वा धारेत्तए वा॥८३॥ ___ गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं णिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेजा, तिषिण संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उहिसित्तए वा धारेत्तए वा, तिहिं संवच्छेरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स णिव्विकारस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥८४॥ ___ आयरियउवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं अणिक्खिवित्ता मेहुणधम्म पडिसेवेजा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियंणो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥८५॥ ___ आयरियउवज्झाए आयरियउवझायत्तं णिक्खिवित्ता मेहुणधर्म पडिसेवेजा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं णो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उहिसित्तए वा धारेत्तए वा, तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स णिव्विकारस्स एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा॥८६॥ . ___ कठिन शब्दार्थ - गणाओ - गण से, मेहुणधम्मं - अब्रह्मचर्य, तिण्णि - तीन, संवच्छराणि - वर्ष, तप्पत्तियं - उस कारण से, आयरियत्तं - आचार्यत्व - आचार्य पद, उद्दिसित्तए - उद्दिष्ट करना - देना, धारेत्तए - धारण करना, गणावच्छेइयत्तं - गणावच्छेदित्वगणावच्छेदक पद, तिहिं - तीन, वीइक्कंतेहिं - व्यतिक्रान्त - व्यतीत हो जाने पर, चउत्थगंसिचौथे वर्ष में, पट्ठियंसि - प्रविष्ट होने पर, ठियस्स - ब्रह्मचर्य में स्थित, उवसंतस्स - उपशान्त, उवरयस्स - उपरत - विषय-वासना से रहित, पडिविरयस्स - प्रतिविरत - अब्रह्मचर्य से सर्वथा पृथक्, णिव्विकारस्स - निर्विकार - विकार रहित, अणिक्खिवित्ता - गण से निष्क्रान्त न होकर - पृथक् न होकर, जावज्जीवाए - यावज्जीवन - जीवन पर्यन्त।
भावार्थ - ८२. साधु यदि गण से पृथक् होकर अब्रह्मचर्य का सेवन करे तो उस कारण से उसे तीन वर्ष पर्यन्त आचार्य यावत् गणावच्छेदक पद देना तथा धारण करना नहीं कल्पता।
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