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४१ . पारिहारिक-अपारिहाहिक भिक्षुओं का आहार....... kakkakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkakkakakkakkakkakakakakkartikari
वह स्थविर से निवेदन करे - हे भगवन् ! मुझे विगय पदार्थ लेने की आज्ञा प्रदान करें।
इस प्रकार - स्थविर की अनुज्ञा प्राप्त होने के बाद उसे विगय पदार्थ लेना, सेवन करना कल्पता है।
६८. परिहारकल्पस्थित भिक्षु अपने पात्र लेकर बाहर अपने वैयावृत्य - आहार-पानी आदि लेने हेतु जाए और उसे स्थविर यदि कहे -
आर्य! मेरे योग्य आहार-पानी लेते आना। मैं भी खाना-पीना करूंगा। ऐसा कहने पर उसे स्थविर के निमित्त आहार-पानी लाना कल्पता है। . ..
वहाँ अपारिहारिक (स्थविर) को पारिहारिक भिक्षु के पात्र में से अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, खाना, पीना नहीं कल्पता किन्तु उसे अपने पात्र में, पलाशक में, कमंडलु में, अपने करतलपुट में या हाथ में ले लेकर खाना-पीना कल्पता है।
यह अपारिहारिक भिक्षु का पारिहारिक भिक्षु के साथ कल्प या आचार विधान है। ..
६९. परिहारकल्पस्थित भिक्षु स्थविर के पात्रों को लेकर उनके निमित्त आहार-पानी लेने जाए तब स्थविर उसे ऐसा कहे - हे आर्य! तुम अपने लिए भी आहार-पानी साथ में लेते आना और बाद में खा-पी लेना।।
ऐसा कहने पर उसे स्थविर के पात्रों में अपने लिए भी आहार-पानी लाना कल्पता है।
वहाँ अपारिहारिक (स्थविर) के पात्र में से पारिहारिक भिक्षु को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, खाना, पीना नहीं कल्पता, किन्तु उसे अपने ही पात्र, पलाशक, कमंडलु, करतलपुट या एक हाथ में ले-लेकर खाना, पीना कल्पता है।
यह पारिहारिक भिक्षु का अपारिहारिक के साथ कल्प या आचार विधान है।
विवेचन - 'आचारः प्रथमो धर्मः' जीवन में आचार ही पहला या मुख्य धर्म है। यदि आचार शास्त्रानुमोदित, धर्मनिष्ठ, संयमनिष्ठ न हो तो चाहे व्यक्ति कितना ही ज्ञानी हो, आत्मा का कल्याण नहीं कर सकता। व्रत, तपश्चरण आदि के साथ-साथ दैनंदिन जीवनचर्या भी आध्यात्मिक दृष्टि से सुव्यवस्थित हो यह वांछित है।
सांसारिक माया-मोह-त्यागी, अहिंसक, अपरिग्रही भिक्षुओं के जीवन में तो आचार का सर्वोपरि स्थान है। उनके जीवन का हर कदम आचार विषयक सुव्यवस्था में जुड़ा होता है। इस सूत्र में पारिहारिक और अपारिहारिक भिक्षुओं के एक साथ रहने तथा आहार-पानी लाने,
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