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व्यवहार सूत्र - द्वितीय उद्देशक
. ३० **aaaaaaaaaaaaaaaaaaarakArAAAAAAAAAAAmarikaxxxxxxxxxxxxxxxxxx णिजूहित्तए, अगिलाए तस्स करणिजं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए णामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया॥५६॥
अट्ठजायं भिक्खुं गिलायमाणं णो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स णिज्जूहित्तए, अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए णामं ववहारे पट्टवियव्वे सिया॥५७॥
कठिन शब्दार्थ - णिज्जूहित्तए - निर्वृहित - गण से निर्गत, अगिलाए - ग्लानि रहित भाव से, रोगायंकाओ - रोगांतक से - रोग के प्रभाव से, विप्पमुक्को - विप्रमुक्त - विमुक्त या रहित, अहालहुसए - यथालघुशः - अत्यन्त अल्प - बहुत थोड़ा, ववहारे - व्यवहार में - प्रायश्चित्त में, पट्टवियव्वे - प्रस्थापित करे, 'अणवट्ठप्पं - अनवस्थाप्य - नवम प्रायश्चित्त संवाहक, पारंचियं - पारंचित - दशम प्रायश्चित्त संवाहक, खित्तचित्तं - क्षिप्तचित्तजिसका चित्त संतुलित न हो, ठिकाने न हो, दित्तचित्तं - दीप्तचित्त - जिसका चित्त उत्तेजित हो, जक्खाइटुं- यक्षाविष्ट - प्रेतादि बाधा युक्त, उम्मायपत्तं - उन्मादप्राप्त - पागलपन की बाधा से युक्त, उवसग्गपत्तं - उपसर्ग प्राप्त :- देव, मनुष्य या तिर्यंच द्वारा उत्पादित संकट युक्त, साहिगरणं - साधिकरण - कलह युक्त, सपायच्छित्तं - सप्रायश्चित्त - प्रायश्चित्त युक्त, भत्तपाणपडियाइक्खित्तं - आहार-पानी का परित्यागी, अट्ठजायं - अर्थजात - प्रयोजन विशेष या आकांक्षायुक्त। . भावार्थ - ४६. परिहारकल्पस्थित - परिहार-तप मूलक प्रायश्चित्त में स्थित भिक्षु यदि रोगग्रस्त हो जाए - बीमारी से पीड़ित हो जाए तो गणावच्छेदक को उसे गण से पृथक् करना नहीं कल्पता, किन्तु जब तक वह रोग से विप्रमुक्त न हो जाए - छूट न जाए, तंब तक उसकी अग्लानभाव से वैयावृत्य - सेवा-परिचर्या करनी चाहिए यावत् पश्चात् गणावच्छेदक उसे अत्यल्प - बहुत कम प्रायश्चित्त में प्रस्थापित करे। . ४७. अनवस्थाप्य - नवम प्रायश्चित्त संवाहक भिक्षु यदि रोगग्रस्त हो जाए - बीमारी से पीड़ित हो जाए तो गणावच्छेदक को उसे गण से पृथक् करना नहीं कल्पता है, किन्तु जब तक वह रोग से विप्रमुक्त न हो जाए - छूट न जाए, तब तक उसकी अग्लानभाव से वैयावृत्य - सेवा-परिचर्या करनी चाहिए यावत् पश्चात् गणावच्छेदक उसे अत्यल्प - बहुत कम प्रायश्चित्त में प्रस्थापित करे। . .
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