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व्यवहार सूत्र - प्रथम उद्देशक ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
............२२, २. छेदोपस्थापनीय चारित्र, ३. परिहारविशुद्धि चारित्र, ४. सूक्ष्म-सम्पराय चारित्र एवं ५. यथाख्यात चारित्र। - छेदोपस्थापनीय चारित्र के दो रूप हैं। 'सवं सावज जोगं पच्चक्खामि' - समस्त सावध योगों का प्रत्याख्यान - परित्याग करता हूँ, इस प्रतिज्ञात्मक घोषणा के साथ मुमुक्षु जो सर्व सावद्य त्याग रूप चारित्र ग्रहण करता है, उसे सामायिक चारित्र कहा जाता है। लोक भाषा में वह छोटी दीक्षा के रूप में प्रसिद्ध है।
दीक्षा लेने के सातवें दिन या अधिक से अधिक छह मास पश्चात् साधक में पाँच महाव्रतों का विभक्त रूप में आरोपण किया जाता है। उसे निरतिचार छेदोपस्थापनीय चारित्र या बड़ी दीक्षा कहते हैं।
छेदोपस्थापनीय चारित्र का दूसरा रूप यह हैं - प्रथम ली हुई दीक्षा में यदि मूलतः दोष आ जाए, महाव्रत विराधित हो जाए तो उसका छेदन कर साधक को सर्वथा नए रूप में दीक्षा दी जाती है। उसका पिछला दीक्षा-पर्याय समाप्त हो जाता है। इसे 'सातिचार छेदोपस्थापनीय चारित्र' कहते हैं। यह आठवें मूल प्रायश्चित्त के नाम से भी कहा जाता है। .. इस सूत्र में इसी अर्थ.में छेदोपस्थापनीय का प्रयोग हुआ है। जब नई दीक्षा गृहीत की जाती है तो पूर्ववर्ती दीक्षा-पर्याय का सर्वथा विच्छेद हो जाना ही सबसे बड़ा प्रायश्चित्त है। उसमें 'सर्वे पदा हस्तिपदे निमग्नाः - हाथी के पैर में सभी पैर समा जाते हैं के अनुसार सभी प्रायश्चित्त सर्वथा समाविष्ट हो जाते हैं। .
आलोचना-क्रम भिक्खूय अण्णयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता इच्छेज्जा आलोएत्तए, जत्थेव अप्पणो आयरियउवज्झाए पासेजा, तेसंतियं * आलोएजा पडिक्कमेजा शिंदेजा गरहेज्जा विउद्देजा विसोहेजा अकरणयाए अब्भुटेज्जा अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तं पडिवज्जेज्जा॥३४॥
णों चेव अप्पणो आयरियउवज्झाए पासेज्जा, जत्थेव संभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं तस्संतियं आलोएजा जाव पडिवजेजा॥३५॥ •णो चेव णं संभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागमं जत्थेव अण्णसंभोइयं साहम्मियं पासेज्जा बहुस्सुयं बब्भागम, तस्संतियं आलोएजा जाव पडिवजेजा॥३६॥
* पाठान्तर - 'तस्संतियं' या तस्संतिए' . .
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