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बृहत्कल्प सूत्र - प्रथम उद्देशक
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संसारपक्षीय माता-पिता, भाई-बंधु इत्यादि निकटतम संबंधी हों, वहीं वे ठहर सकती हैं क्योंकि वे साध्वियों के चारित्र संरक्षण का सहज रूप में दायित्व लिए होते हैं।
लिए होते हैं। पूर्व वर्णित चारों भाव प्रतिबद्ध साध्वियों के लिए भी प्रतिबद्ध या वर्जित हैं।
यद्यपि अनिवार्य स्थिति में, अपवाद रूप में वैसे प्रतिबद्ध स्थान में रहना पड़े तो वहाँ वैराग्य संवलित, उज्ज्वल, सुदृढ परिणामों के साथ आत्मनियमनपूर्वक रहना वांछित है।
प्रतिबद्ध मार्ग युक्त उपाश्रय में ठहरने का कल्प-अकल्प णो कप्पइ णिग्गंथाणं गाहावइकुलस्स मझमझेणं गंतुं वत्थए॥३२॥ कप्पइ णिग्गंथीणं गाहावइकुलस्स मज्झंमज्झेणं गंतुं वत्थए॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - मझमझेणं - बीचोबीच, गंतुं - जाना। . . भावार्थ - ३२. जिस उपाश्रय में जाने का रास्ता गाथापति कुल - गृहस्थवृन्द के घर के बीचों-बीच होकर हो, उसमें साधुओं का रहना नहीं कल्पता। ... ३३. जिस उपाश्रय का मार्ग गाथापति घर के बीचोंबीच होकर जाता हो, उसमें साध्वियों को प्रवास करना कल्पता है।
विवेचन - इस प्रसंग में गाहावड़ (गाथापति) शब्द विशेष रूप से विचारणीय है। यह विशेषतः जैन साहित्य में ही प्रयुक्त है। गाहा + वह इन दो शब्दों के मेल से यह बना है। प्राकृत में 'गाहा' आर्या छन्द के लिए भी आता है और घर के अर्थ में भी प्रयुक्त है। इसका एक अर्थ प्रशस्ति भी है। धन, धान्य, समृद्धि, वैभव आदि के कारण बड़ी प्रशस्ति का अधिकारी होने से भी एक संपन्न, समृद्ध गृहस्थ के लिए इस शब्द का प्रयोग टीकाकारों ने माना है। पर, गाहा का अधिक संगत अर्थ घर ही प्रतीत होता है। ... पूर्वोक्त सूत्रों में प्रतिबद्ध स्थान विषयक विधि-निषेध की चर्चा हुई है। इस सूत्र में मार्ग . विषयक चर्चा है। उपाश्रय को जाने वाला मार्ग गृहस्थ के घर के बीच से होकर हो तो वह प्रतिबद्ध मार्ग कहा गया है। साधुओं को वैसे उपाश्रय में जाना अविहित है क्योंकि उधर से निकलने में गृहस्थों के कार्यकलाप दृष्टिगोचर होते हैं। स्त्रियाँ भी नजर में आती हैं। वैसा सब देखकर मन का विचलित होना आशंकित है। अत एव शील सुरक्षा की दृष्टि से साधुओं के . लिए इसे निषिद्ध कहा गया है।
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