________________
१०९
☆☆☆☆☆☆
घास-फूस से आवृत छत वाले स्थान में प्रवास का विधान
☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆
सेत वा जाव संताणएसु, उप्पिंसवणमायाए कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथी वा तहप्पगारे उवस्सए हेमंतगिम्हासु वत्थए ॥ ३४ ॥
सेतसु वा जाव संताणएसु अहेरयणिमुक्कमउडेसु णो कप्पड़ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए वासावासं वत्थए ॥ ३५ ॥
सेतसु वा जाव संताणएसु उप्पिंरयणिमुक्कमउडेसु कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए वासावासं वत्थए । ३६ । त्ति - बेमि ॥ बिहक्कप्पे चउत्थो उद्देसओ समत्तो ॥४॥
कठिन शब्दार्थ पुञ्ज - समूह, पलाल शल्य आदि पराल, अप्पण्डेसु - अण्डों से रहित, अप्पपाणेसु - द्वीन्द्रिय आदि जीवों से रहित, अप्पबीएसु- बीजों से रहित, अप्पहरिएसु - अंकुरित बीजादि की हरियाली से रहित, अप्पुस्सेसु ओस आदि से रहित, उत्तिंग - चींटियों का समूह, पणग- लीलण - फूलण इत्यादि विषयक वनस्पतिकाय, दगमट्टियकर्दम - कीचड़, मक्कडगसंताणएसु- मकड़ी के जालों से युक्त, अहेसवणमायाए कानों से नीचे, अहेरयणिमुक्कमउडेसु - दोनों हाथों को ऊपर उठाकर मिलाने से बनी मुकुट की भाँति आकृति से नीचे, उप्पिं - ऊपर ।
भावार्थ - ३३. जो उपाश्रय, तृणों, तृणपुंजों, परालों, परालपुञ्जों से युक्त हो तथा अण्डों, द्वीन्द्रिय आदि जीवों, बीजों, हरियाली, ओस, चींटियों के समूह, लीलण - फूलण संज्ञक वनस्पति विशेष की जड़ तथा मकड़ी आदि के जालों से युक्त न हो तथा उस (उपाश्रय) की ऊँचाई कानों से नीची हो तो इस प्रकार के उपाश्रय में साधु-साध्वियों को हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में रहना नहीं कल्पता है।
4
Jain Education International
☆☆☆☆
-
३४. कोई उपाश्रय तृणों से बना हो यावत् मकड़ी के जालों से युक्त न हो तथा उसकी छत की ऊँचाई कानों से ऊँची हो तो उस प्रकार के उपाश्रय में साधु-साध्वियों को हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में रहना कल्पता है।
३५. कोई उपाश्रय तृणों से निर्मित हो यावत् मकड़ी के जालों से युक्त न हो तथा रनिमुक्तमुकुट - खड़े व्यक्ति द्वारा हाथों को ऊपर उठाकर मिलाने से बनी मुकुट की भाँति आकृति से छत की ऊँचाई कम हो ( मिले हुए हाथ स्पर्श करें) तो ऐसे उपाश्रय में साधुसाध्वियों को वर्षावास में रहना नहीं कल्पता है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org