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सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के पश्चात्त आहारग्रहण विषयक प्रायश्चित्त
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कठिन शब्दार्थ - अविओसवेत्ता - क्रोधादि का उपशमन किए बिना, उवसंपज्जित्ताणं( अन्य गण की आज्ञा ) स्वीकार करना, परिणिव्वाविय - कषायाग्नि को उपशान्त कर, पडिणिजाएयवे - भेज देना चाहिए, पत्तियं प्रतीति या विश्वास ।
भावार्थ - ५. (कोई) भिक्षु कलह कर उसका उपशमन किए बिना ( क्रोधावेश में) अन्य गण की आज्ञा स्वीकार करना चाहे अन्य गण में शामिल होने की इच्छा करे तो उसे पांच दिवा - रात्रि का दीक्षा छेद देकर, शान्त-उपशान्त करते हुए दुबारा उसी गण में लौटा देना चाहिए अथवा पूर्वगण को जैसी प्रतीति हो, उसी प्रकार इस संबंध में करना चाहिए ।
विवेचन - किसी भी साधु के लिए क्रोधादि करना किसी भी प्रकार से आगम सम्मत नहीं है। यह ऐसा कषाय है, जो क्षणभर में वर्षों की साधना को धूल में मिला सकता है। इस संदर्भ में पूर्व में विवेचन किया जा चुका है।
ऐसे अवसर आचार्य, उपाध्याय आदि किसी के द्वारा भी परिस्थितिवश उपस्थित हो सकते हैं। अतः भाष्यकार ने इनके लिए अलग-अलग प्रायश्चित्त आदि के विधान किए हैं, जो जिज्ञासुओं के लिए पठनीय हैं।
सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के पश्चात्त आहारग्रहण विषयक प्रायश्चित्त
भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे संथडिए णिव्वितिगिच्छे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेजाagree सूरि अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचिमाणे वा विसोहेमाणे वा णा(णोअ ) इक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ६ ॥
भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे संथडिए विइगिच्छासमावण्णे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जाअणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जं च मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा णाइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ७ ॥
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