________________
बृहत्कल्प सूत्र छठा उद्देश
भावार्थ - १९. निर्ग्रन्थाचार का विघात करने वाले छह स्थान कहे गए हैं
-
Jain Education International
क्योंकि सर्वत्र भगवान् ने अनिदानता को प्रशस्त
उत्तम बतलाया है।
विवेचन एक निर्ग्रन्थ का जीवन संयत, शालीन, स्वल्प, सप्रयोजनभाषिता युक्त, इच्छा आकांक्षा विवर्जित, प्रत्येक क्रिया में जागरूकतापूर्ण तथा एक मात्र मोक्ष के परम लक्ष्य से अभिभावित होता है।
' इनमें बाधा उत्पन्न करने वाली प्रवृत्तियाँ निर्ग्रन्थ की संयम साधना का नाश करती हैं। उन प्रवृत्तियों के लिए सूत्र में 'बलिमंथ' शब्द का प्रयोग हुआ है । मूलतः यह 'परिमन्धु' शब्द है । संस्कृत और प्राकृत में 'रलयोः साम्यम्' 'र' और 'ल' समान हैं। इस प्रवृत्ति के अनुसार 'र' का प्राकृत में 'ल' हो गया है। 'परिमन्धु' शब्द 'परि' उपसर्ग और 'मथ्' धातु 'से बनता है। 'परि-पर्याप्ततया समग्रतया वा मथ्नाति नाशयति इति परिमन्यु'जो समग्रता से नाश कर देता है, उसे परिमन्थ कहा जाता है। यहाँ जिन-जिन प्रवृत्तियों को संयम के लिए परिमन्धु बतलाया है, वे - वे प्रवृत्तियां संयम के सूत्रोक्त हेतुओं का नाश करती हैं । यहाँ प्रयुक्त 'मौखर्य' शब्द 'मुखरस्य भावः मौखर्यम्' मुखर से बना है यहां मौखर्य का अर्थ निष्प्रयोज्य भाषिता से है। आज आर्य परिवारीय हिन्दी आदि आधुनिक भाषाओं में मुखर शब्द इस अर्थ में प्रयुक्त नहीं है । वह स्पष्टभाषी या वाग्मी के अर्थ में है । भाषाशास्त्र के अनुसार यह अर्थोत्कर्षमूलक परिवर्तन का उदाहरण है।
यहाँ 'भिन्ना' (भिध्या) शब्द प्रयुक्त हुआ है, उस संदर्भ में ज्ञातव्य है कि मूलतः यह अभिध्या शब्द है, जिसका तात्पर्य 'लोभ' से है। भाषा विज्ञान की मुखसुख प्रवृत्तिमूलक संक्षिप्तीकरण की प्रक्रिया का उदाहरण है, जिसमें किसी शब्द का लोप हो जाता है।
-
१. भाण्ड जैसी निर्लज्जतापूर्ण चेष्टाएं संयम का विनाश करती हैं।. २. मुखरता - वाचालता सत्य का नाश करती है।
३. यथेच्छ आहारादि न मिलने पर चिढना - बड़बड़ाना एषणा समिति का नाश करती है।
४. चक्षुलोलुपता ईर्यासमिति का विघात करती है ।
५.
इच्छालोलुपता मुक्तिमार्ग का विघात करती है।
६. लोभवश निदान करना मोक्षमार्ग का विघातक है।
-
-
१४२
For Personal & Private Use Only
☆☆★★
-
www.jalnelibrary.org