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संयमविघातक छह स्थान ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
विवेचन - जैसा पूर्वतन सूत्रों में वर्णित हुआ है, यद्यपि सामान्यतः आचार - मर्यादा के अनुसार साधु-साध्वी एक दूसरे का देह स्पर्श नहीं कर सकते किन्तु विषम, खतरनाक स्थिति में वैसा करने का अपवादमार्गानुगत विधान है। ___इस सूत्र में वर्णित स्थितियों में साधु तभी साध्वी को प्रतिगृहीत या अवलम्बित कर सकता है जबकि उसकी सहवर्तिनी साध्वियाँ वैसा करने में समर्थ न हो, यथेष्ट संख्या में उपस्थित न हो। यह आपत्तिकालीन स्थिति है। यदि साधु भी कदाचित् ऐसी दुर्वस्था में आपतित हो जाय और कोई सहारा देने वाला साधु न हो, वैसी स्थिति में साध्वी भी उसे अवलम्बन दे तो वह जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करती।
इस सूत्र प्रयुक्त कतिपय पारिभाषिक शब्दों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है - क्षिप्तचित्त - मानसिक ग्लानि आदि के कारण चित्त में उत्पन्न अस्थिरता। दीप्तचित्त - लौकिक-पारलौकिक वस्तु विशेष से जनित हर्षातिरेकवश भ्रान्त चित्त। यक्षाविष्ट - यक्ष, प्रेत, व्यंतर आदि से गृहीत स्थिति। उन्मादप्राप्त • वातादि जनित रोगों के परिणामस्वरूप उत्पन्न चैतसिक उन्मादयुक्त। . सप्रायश्चित्त • कठोर, वृहद् प्रायश्चित्त के परिणामस्वरूप व्यथित चित्तवृत्तियुक्त। भक्तपानप्रत्यारव्यात - आहार-पानी के प्रत्याख्यानजनित अशक्त या दुर्बल देह युक्त।
अर्थजात - शिष्य आदि का अर्थ या द्रव्य (निधि) आदि को देखने से चित्त असंतुलित होना।
संयमविघातक छह स्थान छ कप्पस्स पलिमंथू पण्णत्ता तंजहा - कुक्कुइए संजमस्स पलिमंथू, मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमंथू, तितिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू, चक्खुलोलुए इरियावहियाए पलिमंथू, इच्छालो(भ-ल ए)भे मुत्तिमग्गस्स पलिमंथू; भिज्जा( भुजो) णियाणकरणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सव्वत्थ भगवया अणियाणया पसत्था॥१९॥
कठिन शब्दार्थ - पलिमंथू - परिमन्थवः - संयम का परिमन्थन - घात करने वाले, . कुक्काए - कौत्कुच्य, मोहरिए - मौखर्य - वाचालता, तितिणिए - बड़बड़ करने वाला, चक्पलालुए - नेत्र चंचलता युक्त, इच्छालोभे - आहारादि में गृद्धभाव, मुत्तिमग्गस्स - मुक्ति मार्ग का, भिज्जाणियाणकरणे - अभिध्यानिदानकारण - लालचवश निदान करना।
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