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१३९ संकटापन्न स्थिति में साधु द्वारा साध्वी को अवलम्बन का विधान *********************************************************
इस संबंध में इतना और ध्यान रखने की आवश्यकता है कि वैसा करते समय प्रतिष्ठित एवं योग्य साक्षी भी रहे।
संकटापन्न स्थिति में साधु द्वारा साध्वी को अवलम्बन का विधान
णिग्गंथे णिग्गंथिं दुग्गंसि वा विसमंसि वा पव्वयंसि वा पर खु)खलमाणिं वा पवडमाणिं वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥७॥ _णिग्गंथे णिग्गंथिं सेयंसि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदयंसि वा ओकसमाणिं वा ओबुज्झमाणिं वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥८॥ ___णिग्गंथे णिग्गंथिं णावं आरोहमाणिं वा ओरोहमाणिं वा गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥९॥
खित्तचित्तं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥१०॥ दित्तचित्तं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वां णाइक्कमइ॥११॥ जक्खाइटुं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥१२॥ उम्मायपत्तं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥१३॥ उवसग्गपत्तं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥१४॥ साहिगरणं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥१५॥ सपायच्छित्तं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥१६॥
भत्तपाणपडियाइक्खियं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइक्कमइ॥१७॥
अट्ठजायं णिग्गंथिं णिग्गंथे गेण्हमाणे वा अवलम्बमाणे वा णाइकमइ॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - दुग्गंसि - दुर्गम - संकटापन्न या दु:खद स्थान, विसमंसि - प्रतिकूल, पक्खलमाणिं - स्खलित होती हुई, पवडमाणिं - गिरती हुई, गेण्हमाणे - प्रतिग्रहीत करता हुआ, अवलम्बमाणे - अवलम्बन या सहारा देता हुआ, सेयंसि - कीचड़ युक्त पानी में, पंकसि - कर्दम (कीचड़) में, पणगंसि - सूक्ष्म हरितकाय - काई (लीलनफूलन), ओकसमाणिं - फिसलती हुई, ओबुज्झमाणिं - डूबती हुई, णावं - नौका पर, आरोहमाणिं - चढ़ती हुई, ओरोहमाणिं - उतरती हुई, खित्तचित्त - क्षिप्तचित्त, जक्खाइटुं
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