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___ परस्पर काँटा आदि निकालने का विधान ***********************************************************
साध्वाचार विषयक इन छह प्रायश्चित्त स्थानों का आरोप लगाने वाला यदि उन्हें प्रमाणित, साबित न कर सके तो वह अपने द्वारा लगाए जाने वाले दोषों का (स्वयं) भागी होता है। .
विवेचन - यदि कोई साधु किसी अन्य साधु पर उपर्युक्त में से कोई आरोप लगाए, आचार्य के समक्ष शिकायत करे, आरोपकर्ता उन्हें प्रमाणित कर सके तो आरोपित दोष का भागी होता है। यदि वैसा न कर सके तो प्राप्त होने वाले प्रायश्चित्त का उस आरोपी को भागी होना पड़ता है।
यह मर्यादा साधुओं को वाक्संयम की विशेष प्रेरणा प्रदान करती है। किसी भी व्यक्ति को बिना पूरी जानकारी के किसी भी प्रकार का आरोप लगाना सर्वथा अनुचित है। उसके लिए तदनुरूप प्रायश्चित्त की दण्डभागिता उसमें तद्विषयक जागरूकता उत्पन्न करने हेतु है। इसके परिणामस्वरूप प्रत्येक साधु अपने आप में अत्यंत सावधानी बरतता है। ___ईर्ष्या आदि मलिन भावों से वह बचा रहता है।
परस्पर काँटा आदि निकालने का विधान णिग्गंथस्स य अहे पायंसि खाणू वा कण्टए वा हीरे वा सक्करे वा परियावज्जेजा; तं च णिग्गंथे णो संचाएइ णीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं णिग्गंथी णीहरमाणी वा विसोहेमाणी वा णाइक्कमइ॥३॥
णिग्गंथस्स य अच्छिंसि पाणे वा बीए वा रए वा परियावज्जेजा, तं च णिग्गंथे णो संचाएइ णीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं णिग्गंथी णीहरमाणी वा विसोहेमाणी वा णाइक्कमइ॥४॥ __णिग्गंथीए य अहे पायंसि खाणू वा कंटए वा हीरे वा सक्करे वा परियावज्जेजा, तं च णिग्गंथी णो संचाएइ णीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं णिग्गंथे णीहरमाणे वा विसोहेमाणे वा णाइक्कमइ॥५॥
णिग्गंथीए य अच्छिंसि पाणे वा बीए वा रए वा परियावज्जेज्जातं च णिग्गंथी णो संचाएइ णीहरित्तए वा विसोहेत्तए वा, तं णिग्गंथे णीहरमाणे वा विसोहेमाणे वा णाइक्कमइ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - अहे - नीचे, पायंसि - पैर में, खाणू - स्थाणु - लकड़ी का
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