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बृहत्कल्प सूत्र - छठा उद्देशक
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भुजा अलंकार, चन्द्र के समान चमचमाते हार आदि आभूषण व्यक्ति को विभूषित नहीं करते। केवल वाणी ही व्यक्ति को अलंकृत करती है, जो संस्कार युक्त हो। अन्य सभी बाह्य आभूषण क्षीण होने वाले हैं, नश्वर हैं। संस्कारयुक्त वाणीरूप आभूषण कभी नष्ट नहीं होता।
वाणी के लिए यहाँ प्रयुक्त 'संस्कृता' शब्द बड़ा महत्त्वपूर्ण है। वह अहिंसा, संयम, मानसिक संतुलन, धैर्य तथा सहिष्णु भाव आदि उत्तमोत्तम गुणों का द्योतक है। ऐसे ही 'संस्कारों से सुसज्ज वाणी साधु के लिए वचनीय है क्योंकि वाणी ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का , संसूचन करती है, कहा है -
'चरित है मूल्य जीवन का, वचन प्रतिबिम्ब है मन का। सुयश है आयु सज्जन की, . सुजनता है प्रभा धन की।'
मिथ्या आरोपी के लिए तदनुरुप प्रायश्चित्त विधान . कप्पस्स छ पत्थारा पण्णत्ता, तंजहा - पाणाइवायस्स वायं वयमाणे, मुसावायस्स वायं वयमाणे, अदिण्णादाणस्स वायं वयमाणे, अविरइ(य)यावायं वयमाणे, अपुरिसवायं वयमाणे, दासवायं वयमाणे, इच्चेए कप्पस्स छप्पत्थारे पत्थरेत्ता सम्म अप्पडिपूरेमाणे तट्टाणपत्ते सिया॥२॥ .
कठिन शब्दार्थ - पत्यारा - प्रस्तार - विशेष प्रायश्चित्त स्थान, अपुरिसवायं - नपुंसक का आरोप, अप्पडिपूरेमाणे - प्रमाणित न किए जा सकने पर, तट्ठाणपत्ते - उस स्थान पर - वैसी स्थिति में दिए जाने वाले।
भावार्थ - २. साध्वाचार के छह विशेष प्रायश्चित्त स्थान प्रतिपादित किए गए हैं - १. प्राणातिपात - जीव हिंसा का आक्षेप लगाए जाने पर, २. मृषावाद - असत्य भाषण करने का आरोप लगाए जाने पर, ३. अदत्तादान - चोर्य द्वारा आरोपित किए जाने पर, ४. अब्रह्मचर्य सेवन का आरोप किए जाने पर, . ५. नपुंसक होने का आक्षेप लगाए जाने पर, । ६. दास - गुलाम होने का आक्षेप लगाए जाने पर।
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