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बृहत्कल्प सूत्र - पंचम उद्देशक
१८. साध्वी को एक गाँव से दूसरे गाँव एकल विहार करना एवं वर्षावास ( एकाकी) करना कल्प्य नहीं होता ।
it कप्पड़ णिग्गंथी अचेलियाए होत्तए ॥ १९॥
it कप णिग्गंथी अपाइयाए होत्तए । । २० ॥
विवेचन - एकाकिनी साध्वी के गमनामन एवं वर्षावास आदि का जो निषेध किया गया है, वह उसकी दैहिक संस्थिति को दृष्टि में रखते हुए किया गया है क्योंकि अकेली साध्वी के साथ दुराचरण या दुर्व्यवहार आदि की हमेशा आशंका बनी रहती है। इसीलिए इसे शास्त्रमर्यादानुसार अकल्पनीय कहा है। इस संदर्भ में पूर्व में भी चर्चा की जा चुकी है। साध्वी को वस्त्र - पात्र रहित होने का निषेध
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कठिन शब्दार्थ - अचेलियाए - वस्त्र रहित, अपाइयाए- पात्र रहित । भावार्थ - १९. साध्वी का वस्त्र रहित होना अकल्पनीय होता है ।
२०. साध्वी का पात्र रहित होना कल्पनीय नहीं होता ।
विवेचन - विविध प्रकार के साधनाक्रमों में, यथा जिनकल्पी साधना में भिक्षु वस्त्र रहित होकर संयमाराधना में प्रवृत्त होता है। यह उसके लिए जिनाज्ञानुसार एवं कल्पनीय होता है परन्तु साध्वी के लिए यह सर्वथा निषिद्ध है । वह जिनकल्पी नहीं हो सकती ।
इसके अलावा उसके लिए पात्र रहित होना भी अविहित कहा गया है क्योंकि आहारनीहार आदि के प्रसंगों में पात्रों की आवश्यकता होती है।
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जैसा पूर्व सूत्र में विवेचित हुआ है, यह निषेध साध्वी के दैहिक संस्थान के कारण किया गया है क्योंकि वस्त्र रहित होने पर कामुक एवं अज्ञ पुरुष द्वारा साध्वी पर कुदृष्टि डाली जा सकती है, उसके लिए उपसर्ग उत्पन्न किया जा सकता है।
साध्वी के लिए आसनादि का निषेध
णो कप्पड़ णिग्ग्रंथीए वोसट्टकाइयाए होत्तए ॥ २१॥
tatus णिग्गंथी बहिया गामस्स वा जाव (रायहाणीए ) संणिवेसस्स वा उड्ड बाहाओ पगिज्झिय २ सूराभिमुहीए एगपाइयाए ठिच्चा आयावणाए आयावेत्तए । कप्पइ
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