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बृहत्कल्प सूत्र - पंचम उद्देशक
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पुलाकभक्त ग्रहीत होने पर पुनः भिक्षार्थ जाने का विधि-निषेध
णिग्गंथीए य गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुप्पविट्ठाए अण्णयरे पुलागभत्ते पडिग्गाहिए सिया, सा य संथरेजा, कप्पड़ से तदिवसं तेणेव भत्तटेणं पज्जोसवेत्तए णो से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं पिण्डवाय पडियाए पविसित्तए; सा य णो संथरेजा, एवं से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं पिण्डवाय पडियाए पविसित्तए।॥५२॥त्ति बेमि॥
बिहक्कप्पे पंचमो उद्देसओ समत्तो॥५॥ कठिन शब्दार्थ - पुलागंभत्ते - पुलाकभक्त - संयम को निस्सार करने वाला भोजन, संथरेज्जा - निर्वाह हो जाए, पज्जोसवेत्तए - पर्युषित रखे - दिनभर निर्वाह करे। ..
भावार्थ - ५२. यदि कोई साध्वी आहार हेतु सद्गृहस्थ के घर में संप्रविष्ट हो तथा किसी एक घर में पुलाकभक्त प्राप्त हो जाए तथा यदि उस द्वारा (दिन भर) निर्वाह किया जाना संभव हो तो उसे उस दिन उसी भोजन पर निर्वाह करना कल्पता है। किन्तु दुबारा गृहस्थ के यहाँ आहार प्राप्ति हेतु जाना नहीं कल्पता।
यदि उस द्वारा निर्वाह किया जाना संभव न हो (अल्प हो) तो पुनः गृहस्थ के यहां आहार प्राप्ति हेतु प्रविष्ट होना - जाना कल्पता है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में भक्त (आहार) के पूर्व में जो पुलाक विशेषण आया है उसका अर्थ निस्तथ्य या सारहीन या कदन्न है। भाष्यकार ने धान्यपुलाक, गन्धपुलाक तथा रसपुलाक के रूप में इसके तीन भेद बतलाए हैं। चणक (चना), वल्ल आदि कुछ ऐसे धान्य हैं, जिनमें सारभूत तत्त्व बहुत कम होता है। त्वक् या भूसे का भाग अधिक होता है। इन्हें शुष्क अन्न कहा जा सकता है।
इसी प्रकार गंधपुलाक के अन्तर्गत लहसुन, प्याज आदि तीव्रगंधमय पदार्थों का समावेश है, जो दुर्गन्धित होते हैं। . रसपुलाक के अन्तर्गत इमलीरस, द्राक्षारस आदि आते हैं, जो मादकता उत्पन्न करते हैं।
.. (अ) संस्कृत - हिन्दी कोश, वामन शिवराम आप्टे, (पुलाकः, पुलाकम्), पृष्ठः ६२६
(ब) पाइज सद्द महण्णवो, (पुलाग, पुलाय) पृष्ठ ६०९
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