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महानदी पार करने की मर्यादा
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सेवन करते हुए स्व आचरित दुष्कृत्यों की आलोचना, गर्हा एवं निन्दा कर सके, स्वयं को पुनः पूर्ववत् संयम-साधना में उपस्थापित कर सके ।
इसमें केवल प्रथम दिन आचार्य द्वारा साथ जाकर स्निग्ध आहार दिलवाने का जो उल्लेख किया गया है, वह इसलिए है कि लोगों को इस संदर्भ में जानकारी हो जाए कि अमुक भिक्षु परिहारकल्पस्थित है।
इसके उपरान्त वैयावृत्य तो करने का विधान है किन्तु आहार आदि उसे प्रदान नहीं किए जाते। छह से आठ परिहारतप करने पर अथवा जितना आचार्य उचित समझते हों अथवा उसकी शारीरिक स्थिति के अनुसार जब वह अत्यंत क्लांत, दुर्बल और मूर्च्छित होकर गिर पड़ने की स्थिति में आ जाए, दूसरे शब्दों में सर्वथा अशक्त और क्षीण हो जाए तब उसे पुनः आहार देने का विधान किया गया है ताकि आगे की विहार यात्रा आदि में बाधा न आए। महानदी पार करने की मर्यादा
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मममममे
rt कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा इमाओ पंच महण्णवाओ महाणईओ उद्दिट्ठाओ गणियाओ वंजियाओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्त वा, तंजहा - गंगा जउणा सरयू कोसिया मही, अह पुण एवं जाणेज्जा - एरवई कुणाला - जत्थ चक्किया एगं पायं जले किंच्चा एगं पायं थले किच्चा, एवं से कप्पइ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा, जत्थ णो एवं चक्किया, एवं से णो कप्पइ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरितए वा ॥ ३२॥
कठिन शब्दार्थ - इमाओ ये, उद्दिट्ठाओ - कथित, अभिमत, गणियाओ - गिनी गई, वंजियाओ - व्यक्त प्रसिद्ध, उत्तरित्त - तैर कर पार करना, संतरित्तए - नौका आदि की सहायता से पार करना, जउणा यमुना, सरयू सरयू या घाघरा, चक्कियासंभव हो सके।
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भावार्थ - ३२. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थिनियों को पाँच महानदियों के रूप में वर्णित, प्रसिद्ध इन नदियों को एक मास में दो बार या तीन बार तैर कर या नौका द्वारा पार करना नहीं कल्पता । वे पाँच नदियाँ इस प्रकार हैं- गंगा, यमुना, सरयू, कोसी तथा मही (या माही)।
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