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बृहत्कल्प सूत्र - द्वितीय उद्देशक ************ ***********************************************
सारांश यह है, आहार के साथ सागारिक की सीधी संबद्धता अकल्प्य है। शय्यातर के आहारांश से युक्त भक्त-पान - ग्रहण का विधि-निषेध
सागारियस्स अंसियाओअविभत्ताओअव्वोच्छिण्णाओअव्वोगडाओअणिज्जूढाओ, तम्हा दावए, णो से कप्पइ पडिगाहित्तए।सागारियस्स अंसियाओ विभत्ताओ वोच्छिण्णाओ वोगडाओणिज्जूढाओ, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - अंसियाओ - बहुतों के मिलित अंश, अविभत्ताओ - बिना बंटे हुए, अव्योगडाओ-अपृथक्कृत - पृथक्न किया हुआ, अव्वोच्छिण्णाओ-व्यवच्छेदरहित - सम्बद्ध, अणिजूढाओ - अनिष्कासित - अलग-अलग नहीं निकाले हुए, दावए - देता है। - भावार्थ - २०. सागारिक के तथा अन्यों के मिले हुए (सामूहिक) आहार सम्मिलित रूप में हो, वह विभाग, व्यवच्छेद तथा पार्थक्य रहित हो, उसका किसी भी प्रकार से विभाजन न किया गया हो तो ऐसे आहार को यदि कोई दे तो (साधु-साध्वियों को) भिक्षा लेना नहीं कल्पता।
सागारिक का और अन्यों के मिले हुए आहार विभक्त, व्यवच्छिन्न, पृथक् तथा पार्थक्ययुक्त हो - सागारिक का आहार अलग कर दिया हो तो अन्य आहार साधु के लिए ग्रहण करना कल्पता है।
विवेचन - सागारिक शय्यातर का आहार पूर्णत: अंशतः आदि किसी भी रूप में साधु द्वारा स्वीकार्य नहीं है। इस बात का सूक्ष्मता से स्पष्टीकरण करने हेतु उन स्थितियों की परिकल्पनाएँ की गई हैं, जिनमें किसी भी तरह से सागारिक के आहार का मिश्रण हो। जहाँ वैसा हो, साधु भिक्षा लेते समय जागरूक रहे कि उसे वह ग्रहण न करे। ___इस संबंध में अनेक व्यक्तियों के सम्मिलित आहार का जो प्रसंग उपस्थित किया गया है, उसके आधार पर यह निरूपित हुआ है कि यद्यपि वह आहार अकेले सागारिक का नहीं है, औरों का भी उसमें मिला हुआ है किन्तु अंशिका के रूप में मिलित हो, अलग-अलग बंटवारा नहीं किया गया हो और यह अज्ञात रहे कि शय्यातर का कौनसा भाग हो तो ऐसी संशयापन्न स्थिति में आहार ग्रहण कदापि कल्पनीय नहीं है।
किंतु जहाँ अंशिकागत आहार में से शय्यातर का आहार पृथक् कर दिया जाय तदुपरान्त सामूहिक,यो पृथक्-पृथक् अवशिष्ट आहार में से ग्रहण कल्प्य है।
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