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बृहत्कल्प सूत्र - चतुर्थ उद्देशक
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गणावच्छेइए य गणाओ अवक्काम इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, णो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अणिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं णिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, णो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से णो वियरेज्जा एवं से णो कप्पड़ अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए॥२१॥
आयरिय-उवज्झाए य गणाओ अवकम्म इच्छेज्जा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, णो से कप्पइ आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं अणिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ आयरियउवज्झायस्स आयरियउवज्झायत्तं णिक्खिवित्ता अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, णो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पड़ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से णो वियरेजा, एवं से णो कप्पइ अण्णं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए॥२२॥ .
कठिन शब्दार्थ - अवक्कम्म - निकल कर (अवक्रांत कर), उवसंपजित्ताणं - स्वीकार कर, विहरित्तए - (वहाँ) स्थिर रहे, अणापुच्छित्ता - बिना पूछे, वियरेजा - (गण से जाने की) आज्ञा दें, अणिक्खिवित्ता - त्याग किए बिना। . भावार्थ - २०, यदि कोई भिक्षु (स्व) गण को छोड़कर श्रुतादि ग्रहण हेतु अन्य गण
की उपसंपदा - आज्ञा एवं व्यवस्था स्वीकार करने की इच्छा करे तो उसे आचार्य, उपाध्याय, • प्रवर्तक, स्थविर, गणी, गणधर या गणावच्छेदक की आज्ञा के बिना वहाँ स्थित होना (जाना) नहीं कल्पता है। ..
(परन्तु) आचार्य यावत् गणावच्छेदक से पूछकर (आज्ञा प्राप्त कर) अन्य गण में जाना कल्पता है।
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