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वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में अन्य गण में जाने का विधि-निषेध
कठिन शब्दार्थ - उहिसावेत्तए - वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में जाना, अदीवेत्ता - (अदीपयित्वा) - कारण प्रकाश में लाए बिना (कारण स्पष्ट किए बिना), दीवेत्ता - बतला कर।
भावार्थ - २६. भिक्षु (ज्ञान एवं अनुभववृद्ध) यदि अन्य गण के आचार्य या उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में जाना चाहे तो उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा के बिना अन्य गण के आचार्य, उपाध्याय के यहाँ वाचनार्थ जाना नहीं कल्पता है।
उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा से अन्य गण के आचार्य या उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में जाना कल्पता है। ___ यदि ये आज्ञा दें तभी अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना कल्पता है। ____यदि ये आज्ञा नहीं दें तो अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना नहीं कल्पता है।
उसे (भिक्षु को) कारण पर प्रकाश डाले बिना - कारण स्पष्ट किए बिना अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदाता के रूप में जाना नहीं कल्पता है। ___ उन्हें कारण बतलाकर अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में जाना कल्पता है।
२७. गणावच्छेदक यदि अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचना प्रदाता गुरु के रूप में जाना चाहे तो उसे गणावच्छेदक के पद पर रहते हुए अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना नहीं कल्पता है। ___ उसे गणावच्छेदक के पद का त्याग कर अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना कल्पता है। ___उसे (स्वसंघवर्ती) आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा के बिना अन्य गणवर्ती आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचना प्रदाता के रूप में जाना नहीं कल्पता है।
उसे (गणावच्छेदक को) आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा से अन्य गणवर्ती आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में जाना कल्पता है।
यदि वे आज्ञा दें तभी अन्य संघ के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना कल्पता है।
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