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बृहत्कल्प सूत्र - तृतीय उद्देशक
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७. गणावच्छेदक - ये अनुभवी साधक या वृद्ध साधु होते हैं। इनका कार्य साधु-साध्वियों के भक्तपान, औषधोपचार, प्रायश्चित्त आदि की व्यवस्था करना है। ___ इस प्रकार उपरोक्त सभी पद अधिकारों की अपेक्षा से अवरोही क्रम में हैं। साध्वी को इनमें से जो भी उपलब्ध हो, उनकी निश्रा से वस्त्र आदि लेना कल्पता है।
दीक्षा के समय ग्रहण करने योग्य उपधि णिग्गंथस्स तप्पढमयाए संपव्वयमाणस्स कप्पइ रयहरणगोच्छगपडिग्गहमायाए तिहिं कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए, से य पुव्वोवट्ठविए सिया, एवं से णो कप्पइ रयहरणगोच्छगपडिग्गहमायाए तिहि य कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए; कप्पइ से अहापरिग्गहियाइं वत्थाइं गहाय आयाए संपव्वइत्तए॥१३॥ -णिग्गंथीए णं तप्पढमयाए संपव्वयमाणीए कप्पइ रयहरणगोच्छगपडिग्गहमायाए चउहि य कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए, सा य पुव्वोवट्ठविया सिया, एवं से . णो कप्पइ रयहरणगोच्छगपडिग्गहमायाए चउहि य कसिणेहिं वत्थेहिं आयाए संपव्वइत्तए; कप्पड़ से अहापरिग्गहियाई वत्थाइंगहाय आयाए संपव्वइत्तए॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - तप्पढमयाए - तत्प्रथमतया - साधु धर्म में प्रथमतः, संपव्वयमाणस्ससंप्रव्रजित होने पर, गोच्छग - प्रमार्जनिका, पुव्वोवट्ठविए - पूर्व उपस्थित - पूर्व में दीक्षित, अहापरिग्गहिएहिं - यथापरिगृहीत - पूर्व में स्वीकार। . ___ भावार्थ - १३. (गृहस्थाश्रम से) सर्वप्रथम दीक्षित होने वाले निर्ग्रन्थ (दीक्षार्थी) को रजोहरण, गोच्छक - प्रमार्जनी, पात्र तथा तीन संपूर्ण (अखण्ड) वस्त्र लेकर प्रव्रजित होना कल्पता है।
यदि वह पूर्व में दीक्षित हो चुका है तो उसे रजोहरण, गोच्छक, पात्र तथा तीन अखण्ड वस्त्र लेकर प्रव्रजित होना नहीं कल्पता है।
(अपितु) पूर्व गृहीत वस्त्रों (पात्र, रजोहरण आदि) को लेकर प्रवजित होना कल्पता है।
१४. गृह त्याग कर सर्वप्रथम दीक्षित होने वाली निर्ग्रन्थिनी को रजोहरण, गोच्छक, पात्र तथा चार संपूर्ण (अखण्ड) वस्त्र लंकर प्रवजित होना कल्पता है। ___ यदि वह पूर्व में दीक्षित हो चुकी है तो उसे रजोहरण, गोच्छक, पात्र तथा चार अखण्ड वस्त्र लेकर प्रव्रजित होना नहीं कल्पता है।
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