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पूर्वाज्ञा का विधान
काष्ठफलक आदि रक्षणीय होते हैं। हालांकि ये बहुमूल्य तो नहीं होते तथापि उन्हें वापस लौटाने का कहकर लाए जाते हैं। अतः शय्यातर को वापस लौटाने आवश्यक होते हैं।
चोरादि द्वारा अपहृत या चोरे जाने के भय से उनकी सुरक्षा आवश्यक होती है। अतः । किसी कारणवश उपाश्रय से बाहर जाना पड़े तो साधु को चाहिए कि वह वहाँ किसी को नियुक्त करके जाए।
तप एवं संयममूलक साधना में निरत साधु की जीवनचर्या में ऐसा प्रसंग भी बन सकता है कि वह दत्तचित्त हो जाए, ध्यानस्थ हो जाए तब उस स्थिति में उसके उपाश्रय में रहते हुए भी प्रातिहारिक वस्तु को कोई चुरा कर ले जा सकता है। अतः यदि ऐसा प्रसंग उपस्थति हो तो साधु-साध्वियों को प्रातिहारिक वस्तु की गवेषणा करना कल्पता है। ___ यदि कोई बलवान व्यक्ति वस्तु को अपने अधिकार में कर लेवे तो धर्मवाक्य एवं नीतिन्यायपूर्ण वचनों से उसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। ____ यदि साधु फिर भी उस वस्तु को प्राप्त नहीं कर सके तो शय्यातर को इसकी विधिवत् सूचना देनी चाहिए। यदि शय्यातर किसी विधि से उस वस्तु को पुनः प्राप्त कर लेता है तो साधु के लिए उसकी प्रातिहारिक रूप में पुनः याचना कल्पनीय है। ___अतः यदि साधु-साध्वी खोई हुई वस्तु का विवेकपूर्वक मार्गण-गवेषण (खोजबीन) नहीं करते हैं तो प्रायश्चित्त के भागी होते हैं। ___भाष्यकार ने यहाँ विशेष रूप से ज्ञापित किया है कि शय्यातर यदि वहाँ से अन्यत्र चला जाए, राजा द्वारा राज्य से निकाल दिया जाय, कालधर्म को प्राप्त हो जाए अथवा साधु वृद्धावस्था एवं रुग्णावस्था आदि अपरिहार्य कारणों से मार्गण, गवेषण करने में असमर्थ हो तो उस स्थिति में वह प्रायश्चित्त का भागी नहीं होता है।
पूर्वाज्ञा का विधान जदिवसं समणा णिग्गंथा सेज्जासंथारयं विप्पजहंति, तदिवसं च णं अवरे समणा णिग्गंथा हव्वमागच्छेज्जा; सच्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि उग्गहे ॥२५॥
अत्थि या इत्थ केइ उवस्सयपरियावण्णए अचित्ते परिहरणारिहे, सच्चेव उग्गहस्स पुव्वाणुवण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि उग्गहे ॥२६॥
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