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साध्वी को बिना आज्ञा वस्त्र-ग्रहण-निषेध
१. आचार्य - आचिनोति च शास्त्रार्थम्, आचारे स्थापयत्यपि। स्वयमाचरते यस्मात्, आचार्यस्तेन कथ्यते॥
अर्थात् - जो शास्त्रों के अर्थ का आचयन - संचयन - संग्रहण करते हैं, स्वयं आचार का पालन करते हैं, दूसरों - शिष्यों को आचार में स्थापित करते हैं, उन्हें आचार्य कहा जाता है। ___ आचार्य आठ संपदाओं से युक्त होते हैं, साधु-संघ के स्वामी होते हैं तथा संघ के अनुग्रह-निग्रह, सारण-वारण और. धारण में कुशल होते हैं। आचार्य शिष्यों को अर्थ की वाचना देते हैं।
२. उपाध्याय - ये श्रमणों को सूत्र वाचना देते हैं। भगवती सूत्र में कहा गया है - बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहे। ते उवइसति जम्हा, उवज्झाया तेण वुचंति॥
अर्थात् - जिन प्रतिपादित द्वादशांग रूप स्वाध्याय - सूत्र वाङ्मय, जो ज्ञानियों द्वारा . कथित, वर्णित एवं संग्रथित किया गया है, कां जो उपदेश करते हैं, वे उपाध्याय कहे जाते हैं।
. इस प्रकार 'पाठोच्चारण की शुद्धता, स्पष्टता, विशदता, अपरिवर्त्यता तथा स्थिरता बनाए रखने में उपाध्याय की महती भूमिका होती है।
३. प्रवर्तक - ये साधुओं की योग्यता एवं रुचि देखकर तदनुसार उन्हें सेवा-सुश्रूषा, अध्ययन-अध्यापन, तप, साधना इत्यादि कार्यों में आचार्य की आज्ञा से नियुक्त करते हैं। बड़े संघ की व्यवस्था में ये स्तंभ का कार्य करते हैं।
४. स्थविर • यह मुख्यतः वृद्ध साधु या साध्वी के लिए प्रयुक्त होने वाला विशेषण है। दीर्घकालीन तप, संयम और साधना के परिणामस्वरूप ये अत्यंत अनुभवी होते हैं। नवदीक्षित साधु-साध्वियों या अन्य विचलित होने वाले त्यागियों को ये संयम पथ पर आरूढ करते हैं। उन्हें विचलित देखकर अपने अनुभव से वस्तुतत्त्व एवं सत्य का साक्षात्कार करवाते हैं। ___५. गणी - साधुओं के कुछ सिंघाड़ों (सिंघाटकों) का स्वामी गणी कहा जाता है। एक आचार्य की आज्ञा में अनेक गणी होते हैं। वृहद् संघ के साधु-साध्वी जब दूरवर्ती क्षेत्रों में विचरण करते हैं तब गणी ही आचार्य की आज्ञा एवं शास्त्रमर्यादानुसार आज्ञानुवर्ती साधुसाथियों की व्यवस्था एवं देखरेख करते हैं।
६. गणधर · कुछ साधुओं के मुखिया या प्रमुख को गणधर कहा जाता है।
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