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बृहत्कल्प सूत्र - प्रथम उद्देशक
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विचारभूमि एवं विहार में रात्रि में अकेले गमनागमन का निषेध
णो कप्पइ णिग्गंथस्स एगाणियस्स राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्पबिइयस्स वा अप्पतइयरस वा राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा॥४६॥ _____णो कप्पइ णिग्गंथीए एगाणियाए राओ वा वियाले वा बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्पबिइयाए वा अप्पतइयाए
वा अप्पचउत्थीए वा राओ वां वियाले वा बहिया वियारभूमि वा विहारभूमिं वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा॥४७॥
कठिन शब्दार्थ - एगाणियस्स - अकेले का, णिक्खमित्तए - निकलना, पविसित्तएप्रविष्ट होना, अप्पबिइयस्स - अपने अतिरिक्त एक और, अप्पतइयस्स - अपने सिवाय दो
और, एगाणियाए - एकाकिनी - अकेली, अप्पचउत्थीए - अपने अतिरिक्त तीन और के साथ - कुल चार।
भावार्थ - ४६. साधु को रात्रि या संध्याकाल में अपने स्थान के बाहर विचारभूमि या विहारभूमि में अकेले जाना-आना कल्प्य नहीं है। उसे एक या दो साधुओं के साथ रात में या संध्याकाल में अपने स्थान की सीमा से बाहर विचारभूमि. या विहारभूमि में जाना-आना कल्पता है।
४७. एकाकिनी साध्वी को रात के समय या संध्या समय अपने स्थान से बाहर विचारभूमि या विहारभूमि में जाना-आना नहीं कल्पता। उसे एक, दो या तीन साध्वियों के साथ रात में या संध्याकाल में अपने स्थान से बहिर्भूत विचारभूमि या विहारभूमि में जाना-आना शास्त्रानुमोदित है।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में जो साधु-साध्वी के स्थान में उपाश्रय से बाहर के लिए "बहिया" शब्द का प्रयोग हुआ है, उसका पारंपरिक दृष्टि से विशेष अर्थ है। उपाश्रय से सौ हाथ की दूरी तक का स्थान 'बहिया' या बाह्य भूमि के अन्तर्गत नहीं माना जाता। वह उपाश्रय से संबद्ध ही माना जाता है।
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