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खाद्य सामग्रीयुक्त गृह में प्रवास का विधि - निषेध, प्रायश्चित्त
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पूर्व सूत्रों में जैसा उल्लेख हुआ है, साधु-साध्वी वैसे स्थानों में भी मर्यादानुरूप ठहर सकते हैं, जिसके एक भाग में गृहस्थों का निवास होता है, उनके यहाँ रसोईघर आदि में तथा रात्रि में घर आदि में अग्नि एवं दीपक अल्पकाल के लिए जलाए जाते हैं । अतः वहाँ मर्यादाकाल तक प्रवास करना अकल्प्य नहीं है । अग्नि के दो रूपों को बताने के लिये आगमकारों ने उपर्युक्त दो सूत्र दिये हैं 'अग्नि से तापना, दीपक से पढ़ना आदि । अतः दो रूपों के सिवाय शेष अग्नि के रूपों का निषेध नहीं किया है।' ऐसा पूज्य गुरुदेव बहुश्रुत श्रमण श्रेष्ठ फरमाया करते थे। इन सूत्रों से बिजली की घड़ी स्थानक में होनें पर भी उसका निषेध नहीं होता है। स्थानक में पंखा होने पर -. मेन स्वीच बन्द किया हो, तो बाधा का कारण नहीं समझा जाता है। यदि हवा आदि से ज्यादा हिलता हो तो - नहीं हिले - इस तरह का विवेक करवाया जा सकता है। शून्य वॉट का छोटा सा बल्ब (मीटर आदि में रहा हुआ ) होने पर भी वह प्रदीप होने से आगम के शब्द ' पदीवे' के अर्थ में तो आता ही है । अतः मीटर स्थिर होने से उस पर खोखा आदि लगा देने से बाधा का कारण नहीं है।
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सूत्र में 'सव्वराइए' शब्द देने से मंदिर आदि में कुछ समय के लिये दीपक आदि होने पर बाधा नहीं है। सम्पूर्ण रात्रि होने पर ही निषेध समझना चाहिये ।
खाद्य सामग्रीयुक्त गृह में प्रवास का विधि-निषेध, प्रायश्चित्त
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उवस्सयस्स अंतो वगडाए पिण्डए वा लोयए वा खीरे वा दहिं वा णवणीए वा सप्पं वा तेल्ले वा फाणिए वा पूवे वा सक्कुली वा सिहरिणी वा उक्खित्ताणि वा विक्खित्ताणि वा विइगिण्णाणि वा विप्पइण्णाणि वा, णो कप्पड़ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा अहालंदमवि वत्थए ॥ ८ ॥
अह पुण एवं जाणेज्जा - णो उक्खित्ताइं ४, रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिकाणि वा कुलियकडाणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा कप्पड़ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा हेमंतगिम्हासु वत्थए ॥ ९ ॥
अह पुण एवं जाणेज्जा - णो रासिकडाई ४, कोट्ठाउत्ताणि वा पल्लाउत्ताणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा विलित्ताणि वा कुम्भिउत्ताणि वा
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