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बृहत्कल्प सूत्र - द्वितीय उद्देशक
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यदि कोई वहाँ एक या दो रात्रि से अधिक प्रवास करता है तो वह दीक्षा छेद या तपरूप प्रायश्चित्त का भागी होता है।
. ७. उपाश्रय के भीतर संपूर्ण रात्रि पर्यन्त दीपक जले तो साधु-साध्वियों को वहाँ रहना कल्प्य नहीं होता।
बाहर खोजने पर भी यदि उपयुक्त स्थान न मिले तो ऐसे उपाश्रय - स्थान में एक या द्विरात्रिक प्रवास कल्पनीय है परन्तु एक या दो रात से अधिक अकल्प्य है।
- यदि कोई (साधु-साध्वी) वहाँ एक या दो रात से अधिक का प्रवास करता है तो दीक्षा छेद या तपरूप प्रायश्चित्त का भागी बनता है। - विवेचन - इस सूत्र में अग्निकाय की हिंसा तथा अग्नि के सम्पर्क से होने वाली अन्य जीवों की हिंसा के निवारण की दृष्टि से साधु को अग्नियुक्त या दीपकयुक्त स्थान में आवास करने का निषेध किया गया है। ___ उदाहरणार्थ - कुंभकारशाला तथा लौहकारशाला आदि ऐसे स्थान हैं, जहाँ रातभर अग्नि
प्रज्वलित रहने का प्रसंग होता है। दीपक भी अग्निकायिक है। कहीं-कहीं रात्रि पर्यन्त घरों में . दीपक प्रज्वलित रहते हैं। वैसे स्थानों में तथा और भी किन्हीं स्थानों में जहाँ अग्नि और दीपक का रातभर जलने का योग है, साधु-साध्वियों को प्रवास करना वर्जित है। ___भाष्य एवं चूर्णि में इस संबंध में विशेष चर्चा हुई हैं। वहाँ ठहरने से निम्नांकित दोष आशंकित हैं -
१. अग्नि या दीपक के आस-पास जाने-आने में तेजस् काय के जीवों की हिंसा या विराधना होती है।
- २. साधु का वस्त्र-पात्रादि उपकरण वायु के झोंके से उनमें पड़कर जल सकते हैं, जिससे आग भी लग सकती है।
३. दीपक के कारण शलभ - पतिंगे आदि त्रस जीवों की विराधना होती है।
४. साधु के मन में शीताधिक्य के प्रसंग में उसके निवारणार्थ ताप लेने का संकल्प उत्पन्न हो सकता है।
यहाँ यह विशेष रूप से जानने योग्य है कि "सव्वराइए" शब्द इस भाव का द्योतक है कि अग्नि या दीपक जहाँ सारी रात जले, उस स्थान का निषेध है। यदि कुछ देर के लिए जले तो वहाँ रहना प्रतिबाधित नहीं है। .
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