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बृहत्कल्प सूत्र - प्रथम उद्देशक
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उस आर्य क्षेत्र में भी जहाँ ज्ञान, दर्शन और चारित्र की वृद्धि हो वहाँ ही जा सकते हैं। ऐसा कहा गया है।
प्रथम उद्देशक परिसमाप्त होता है।
विवेचन - "आर्य" शब्द 'ऋ' धातु और 'ण्यत' प्रत्यय के योग से बनता है। "अर्य्यते स्वोत्तमगुणैः सम्मान्यते इति आर्यः" - अपने उत्तम गुणों के कारण जो सम्मान करने योग्य होता है, वह आर्य है। यह इसका व्याकरण की दृष्टि से विवेचन है।
उस प्रकार के लोग ही धर्म, शील, करुणा, उदारता आदि से युक्त होते हैं। एतद्गुणोपेत जनों के बहुलतया निवास के कारण संभवतः क्षेत्रों का सीमाकरण हुआ हो, ऐसा प्रतीत होता है। ऐसे प्रदेशों में उत्तरोत्तर संस्कारवश अच्छे लोग होते रहते हैं। . साधु-साध्वियों के त्यागमय जीवन, धर्म देशना, आचारविद्या इत्यादि से अवगत होते हैं, जिससे साधुओं को स्व-पर कल्याण का विशेष अवसर प्राप्त होता है। . वर्तमान में तो समस्त भारतवर्ष को एक देश कहा जाता है। उसके विभागों को प्रान्त या . प्रदेश कहा जाता है क्योंकि इस समय सारे देश में एक ही केन्द्रीय सत्ता है। प्राचीनकाल में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों का शासन भिन्न-भिन्न राजाओं द्वारा होता था। वे सभी स्वतंत्र थे। इसलिए उन द्वारा शासित क्षेत्र देश के रूप में अभिहित हुए।
प्रज्ञापना सूत्र में भरतक्षेत्र के अन्तवर्ती साढे पच्चीस देश होने का उल्लेख हुआ है -
१.. मगध २. अंग ३. बंग ४. कलिंग ५. काशी ६. कौशल ७. कुरू ८. सौर्य ९. पांचाल १०. जांगल ११. सौराष्ट्र १२. विदेह १३. वत्स १४. शांडिल्य १५. मलय १६. वच्छ १७. अच्छ १८. दशार्ण १९. चेदि २०. सिन्धुसौवीर २१. शूरसेन २२. भंग २३. कुणाल २४. कोटिवर्ष २५. लाट और केकयार्द्ध (आधा केकय)।
इस सूत्र में आये देशों के नामों में थूणा (स्थूण) देश का जो उल्लेख हुआ है, वह उपर्युक्त नामों में नहीं आया है। ऐसा प्रतीत होता है कि कालक्रम से पच्चीस देशों में से किसी देश का यह परिवर्तित नाम हो।
यहाँ कोशाम्बी का जो नाम आया है, वह वत्सदेश की राजधानी का नाम है। कहीं कहीं पर इसे कच्छ देश की राजधानी के नाम से भी कहा गया है।
॥ बृहत्कल्प का प्रथम उद्देशक समाप्त॥ .
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