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बृहत्कल्प सूत्र - प्रथम उद्देशक ***************************************************xxxxxxx
"हृतं-स्तेनादिना चौर्यादिरूपेण स्वायत्तीकृतं, पुनश्च, आनीय आहृतं - दत्तं यस्यां क्रियायां, सा हृताहृता" - चोर आदि द्वारा चोरी आदि के रूप में पहले ली गई किन्तु बाद में शुभपरिणाम या भय आदि के कारण साधु को वापस लौटाई गई वस्तु हृताहृता कही जाती है।
नियुक्तिकार ने 'हरिताहृत' के रूप में इसकी और व्युत्पत्ति की है। जिसके अनुसार पहले हरण की गई वस्तु को बाद में यदि कोई हरित - किसी झाड़ी आदि या पादप विशेष पर डालकर चला जाए (संकोचवश स्वयं वापस न आकर) तो वह भी यदि साधु को चंद्रमा की रोशनी आदि में दिख जाए तो ग्राह्य है।
प्राकृत के 'हरिय' शब्द के हृत और हरित दोनों रूप बनते हैं। वस्त्र आदि निम्नांकित रूप में पुनः प्राप्त हो तो भी स्वीकार्य होते हैं, यथा - .. परियुक्त - गृहीता द्वास ओढने आदि के उपयोग में ले लिया जाए। धौत - जल से धो लिया जाए। रक्त - किसी रंग विशेष से रंग लिया जाए। घुष्ट - वस्त्र के चिह्नों को घिसकर मिटा दिया जाय। मृष्ट - मोटे कपड़े को मसलकर कोमल बना देवे। सम्प्रधूमित - सुगंधित धूप आदि से सुवासित कर देवे।
... रात्रि में गमनागमन निषेध __. णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा राओ वा वियाले वा अद्धाणगमणं एत्तए॥४४॥
णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा राओ वा वियाले वा संखडिं वा संखडिपडियाए एत्तए॥४५॥
कठिन शब्दार्थ - अद्धाण - मार्ग, एत्तए - गमन करना (प्राप्त करना), संखडिं - सामूहिक भोज।
भावार्थ - ४४. रात्रि में या विकाल - संध्याकाल में साधु-साध्वियों को मार्गगमन करना नहीं कल्पता।
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