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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkxt
वैभव के बीच उनका गमनागमन होता है। फिर वे पुरुष प्रातकालीन पूर्व-पश्चात् करणीय कर्तव्य कर, स्नान कर, नित्य-नैमित्तिक मंगलोपचार आदि संपादित कर यावत् समस्त अलंकारों से सुशोभित होकर ऊँचे और विशाल प्रासाद (कूटागारशाला) में, विशाल सिंहासन पर आसीन होते हैं यावत् समस्त रात्रिपर्यन्त दीपज्योति से जगमगाते हुए भवन में, स्त्रीसमूह से घिरे हुए नर्तकों द्वारा प्रदर्शित नृत्य को देखते हुए संगीतकारों द्वारा गाये जाने वाले गीत तथा वादकों द्वारा बजाये जाते हुए वीणा आदि तन्तुवाद्य, तल-ताल, त्रुटित, घन, मृदंग, मादल आदि तालवाद्यों की मधुर ध्वनि को सुनता हुआ मानवजीवन संबंधी उत्तम काम-भोग भोगता हुआ सुखविलासमय जीवन बिताता है।
उसके द्वारा किसी एक को आहूत किए जाने पर यावत् चार-पाँच सेवक (बिना बुलाए ही) उपस्थित हो जाते हैं। वे पूछते हैं - देवानुप्रिय! हम क्या करें? क्या लाएँ? क्या उपनीत - अर्पित करें? क्या कार्य करें? आपकी हार्दिक इच्छा क्या है? आपके मुख के लिए कौन-कौन से स्वादिष्ट पदार्थ वांछित है? .
उनको देखकर निर्ग्रन्थ निदान करता है - यदि सम्यक् रूप में परिपालित तप, नियम, ब्रह्मचर्य का उत्तम फल हो तो यावत् आगामी भव में मुझे भी इसी प्रकार के कामभोगमय सुख प्राप्त हों।
आयुष्मान् श्रमणो! साधु इस प्रकार निदान करता हुआ, यदि उसकी आलोचना किए बिना ही मृत्यु प्राप्त कर ले तो वह किसी एक देवलोक में विपुल ऋद्धशाली यावत् चिरस्थितिकलम्बे आयुष्य वाले देव के रूप में उत्पन्न होता है। (आयुष्य पर्यन्त देवलोक के सुखों को भोगकर) आयुक्षय, भवक्षय एवं स्थितिक्षय होने पर देवलोक से च्यवन कर शुद्धमातृवंशीय भोग कुलों में से किसी एक कुल में पुत्र के रूप में उत्पन्न होता है। . ____वह सुकोमल हाथ-पैर, शरीरयुक्त यावत् सर्वांगसुंदर बालक के रूप में जन्म लेता है। फिर वह बालक अपना बचपन पूर्ण कर युवा होता है, कलाकुशल होता है। क्रमशः युवा होते हुए पैतृक सम्पत्ति का अधिपति होता है। उसको आते-जाते देखकर (छत्र आदि धारण किए हुए .....) इत्यादि समस्त वर्णन यहाँ योजनीय है यावत् उसके आगे-पीछे बहुत से दास-दासी चलते हैं यावत् किंकर, कर्मकर उससे पूछते हैं - स्वामिन् ! आपके मुख को क्या खाना रुचता है?
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