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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा karkkakakakakakakakkartikkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkakkart . खलु समणाउसो ! णिग्गंथो वा णिग्गंथी वा णियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय जाव देवलोएसु देवत्ताए उववज्जइ जाव किं ते आसगेस्स सयइ?॥३१॥
तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स जाव पडिसुणिज्जा? हंता ! पडिसुणिज्जा, से णं सद्दहेजा जाव रोएजा? हंता ! सद्दहेजा०, से णं सीलव्वय जाव पोसहोववासाई पडिवजेजा? हंता ! पडिवज्जेजा, से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएजा? णो इणद्वे समढे॥३२॥
से णं समणोवासए भवइ-अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ, से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूणि वासाणि समणोवासगपरियागं पाउणइ पाउणित्ता बहूई भत्ताइं पच्चक्खाइ? हंता ! पच्चक्खाइ २ त्ता आबाहंसि उप्पण्णंसि वा अणुप्पण्णंसि वा बहूई भत्ताई अणसणाई छेएइ २ त्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवइ, एवं खलु समणाउसो ! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावफलविवागे जेणं णो संचाएइ सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - चलाचलधम्मा - चलाचल धर्म वाले - अस्थिर, पुणरागमणिज्जापुनरावृत्ति युक्त - बार-बार जन्म-मरण के व्यूह में धकेलने वाले, विप्पजहणिज्जा - त्याज्य, अभिगयजीवाजीवे - जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान, उवलद्धपुण्णपावे - पुण्य-पाप आदि तत्त्वों को जानता हुआ, फासुयएसणिज्जं - अचित्त-निर्दोष, पडिलाभेमाणे - प्रतिलाभ देता हुआ - सम्यक्त्वी को चतुर्विध आहार का दान करता हुआ, बहूई भत्ताई - अनेक दिनों तक आहार-पानी का, आबाहंसि - रोग आदि पीड़ा या बाधा, उप्पण्णंसि - उप्पन्न होने पर, अणुप्पण्णंसि - अनुत्पन्न होने पर, समाहिपत्ते - समाधि प्राप्त कर, पव्वइत्तए - प्रव्रजित होने में ।
भावार्थ - आयुष्मान् श्रमणो! मैंने जिस धर्म का प्रतिपादन किया है इत्यादि समस्त वर्णन पूर्व की भाँति यहाँ ग्राह्य है यावत् संयममूलक साधना में पराक्रमपूर्वक गतिशील निर्ग्रन्थ दिव्य और मानुषिक काम भोगों से विरक्त हो जाने पर यह चिन्तन करते हैं - मनुष्य जीवन संबंधी कामभोग निश्चय ही अध्रुव यावत् (पूर्व - पश्चात्) त्याज्य हैं। देव संबंधी कामभोग भी
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