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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
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उस समय अनेक निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से निदान कर्म विषयक वर्णन सुनकर, उसे हृदय में धारण कर उन्हें वंदन, नमस्कार किया तथा उस निदान रूप (पूर्वकृत) कर्म का वहीं आलोचन, प्रतिक्रमण किया यावत् यथायोग्य तपरूप प्रायश्चित्त को स्वीकार किया।
उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में अनेक श्रमणों-श्रमणियों एवं अनेकानेक श्रावक-श्राविकाओं, देव-देवियों को उपदिष्ट करके, देव, मनुष्यों और असुरों की सभा में विराजमान होकर इस प्रकार आख्यात किया, ऐसा विशेष रूप से कहा, ऐसा प्ररूपित किया - हे आर्यो! आयतिस्थान० नामक यह अध्ययन अर्थ, हेतु, कारण, सूत्र, अर्थ और तदुभय - उन दोनों के सहित भगवान् ने पुनःपुनः उपदिष्ट किया।
इस प्रकार आयतिस्थान नामक दशम दशा सम्पन्न होती है।
विवेचन - पंचमहाव्रतात्मक संयम, साधना और तपोमय श्रमणजीवन सदैव पवित्र बना रहे, शास्त्रानुमोदित सिद्धान्तों, नियमों एवं मर्यादाओं के साथ वह गतिशील रहे, यह परम आवश्यक है। उसके एतन्मूलक साधनामय जीवन में विघ्न करने वाले अथवा उसकी पवित्रता को धूमिल करने वाले हेतुओं में निदान मुख्य है। भूल कर भी साधु वैसा न करे, ऐसी प्रेरणा देने हेतु इस दशा में निदानों का, जो मानवीय दुर्बलतावश आशंकित है, वर्णन कर उनसे बचने पर बल दिया गया है। साधु-साध्वी कदापि, किसी भी प्रकार का निदान न करें, ऐसी प्रेरणा प्रदान की गई है।
'निदान' शब्द 'नि' उपसर्ग, 'दा' धातु और 'ल्युट्' प्रत्यय के योग से बनता है। इसका एक अर्थ बंधन, रज्जू या रस्सी है। 'निदानमादि कारण' के अनुसार निदान का अर्थ ·आदि कारण' या मुख्य कारण है। इसका एक अन्य अर्थ काटना या छिन्न करना भी है।
पान अर्थों के अनुसार निदान कर्मबन्ध का हेतु है, आवागमन - जन्म-मरण का मुख्य कारण है, साधना के परम लक्ष्य-मोक्ष का बाधक है।
.भापतिस्थान - जिस निदान का फल अगले जन्म में प्राप्त उसे आयतिस्थान कहते हैं।
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