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बृहत्कल्प सूत्र - प्रथम उद्देशक
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भी वीर पुरुष हैं, जो मृगराज - सिंह का वध करने में भी समर्थ हैं किन्तु अपने को प्रबल कहने वाले लोगों को चुनौती के साथ (मैं) कहता हूँ कि इस संसार में ऐसे विरले ही व्यक्ति हैं, जो काम के दर्प का दलन करने में, उसे जीतने में समर्थ हों।
जैन शास्त्रों में ब्रह्मचर्य की नव बाड़ और एक कोट (परकोटा) का जो उल्लेख हुआ है, वह बहुत सारगर्भित है। उससे स्पष्ट है कि ब्रह्मचर्य के परिरक्षण हेतु विकारोत्पादक हेतुओं को, चाहे वे कितने ही छोटे लगते हों, निवारण करना परमावश्यक है।
जैन धर्म द्वारा स्वीकृत परम विशुद्ध चारित्रिक चर्या को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए ऐसी सूक्ष्म चर्चाएँ की गई हैं, जो दीखने में महत्त्वपूर्ण नहीं लगती किन्तु विशुद्ध संयम-साधना में वे अवश्य ही उपकारक हैं। साधु-साध्वियों के लिए गाँव आदि में प्रवास करने की कालमर्यादा
से गामंसि वा णगरंसि वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडम्बंसि वा पट्टणंसि वा आगरंसि वा दोणमुहंसि वा णिगमंसि वा आसमंसि वा संणिवेसंसि वा संवाहंसि वा घोसंसि वा अंसियंसि वा पुडभेयणंसि वा रायहाणिंसि वा सपरिक्खेसि अबाहिरियंसि कप्पइ णिग्गंथाणं हेमंतगिम्हासु एगं मासं वत्थए॥६॥ ... ___ से गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा सपरिक्खेवंसि सबाहिरियंसि कप्पइ णिग्गंथाणं हेमंतगिम्हासु दो मासे वत्थए, अंतो एगं मासे बाहिं एगं मासं, अंतो वसमाणाणं अंतो भिक्खायरिया बाहिं वसमाणाणं बाहिं भिक्खायरिया॥७॥ ... से गामंसि वां जाव रायहाणिंसि वा सपरिक्खेवंसि अबाहिरियसि कप्पइ णिग्गंथीणं हेमंतगिम्हासु दो मासे वत्थए॥८॥
से गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा सपरिक्खेवंसि सबाहिरियंसि कप्पइ णिग्गंथीणं हेमंतगिम्हासु चत्तारि मासे वत्थए, अंतो दो मासे, बाहिं दो मासे, अंतो वसमाणीणं अंतो भिक्खायरिया बाहिं वसमाणीणं बाहिं भिक्खायरिया॥९॥
कठिन शब्दार्थ - सपरिक्खेवंसि - प्राकार या परकोटे से युक्त, सबाहिरियसि - प्राकार के बाहर बसे हुए, हेमंतगिम्हासु - हेमन्त एवं ग्रीष्म ऋतु में; वत्थए - वास करे, . वसमाणाणं - वास करते हुए, भिक्खायरिया - भिक्षाचर्या - गोचरी।
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