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........... बृहत्कल्प-सूत्र - प्रथम उद्देशक ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
४. साध्वियों को अखण्ड - शस्त्र अपरिणत पक्व ताल प्रलम्ब ग्रहण करना नहीं कल्पता है।
५. साध्वियों को खण्ड-खण्ड किया हुआ, शस्त्र परिणत पक्व ताल प्रलम्ब ग्रहण करना कल्पता है। वह भी विधिपूर्वक अत्यंत छोटे-छोटे टुकड़ों में ग्रहण करना कल्पता है। अविधिभिन्न - विधिपूर्वक टुकड़े-टुकड़े नहीं किया हुआ ग्रहण करना नहीं कल्पता है।
विवेचन - इस सूत्र में आया ‘प्रलम्ब' शब्द "प्रकर्षण लम्बते इति प्रलम्बम्" के अनुसार जो किसी वृक्ष, पौधे या लता से लटकता है, उसके लिए प्रयुक्त हुआ है।
- यहाँ पर 'ताल' शब्द से ताड़ वृक्ष संबंधी फल का ग्रहण किया गया है। इसे 'अग्रप्रलम्ब' कहा जाता हैं। इसका आधारभूत वृक्ष 'तल' कहा जाता है तथा 'प्रलम्ब' शब्द से 'मूल' का ग्रहण किया गया है। इसे मूलप्रलम्ब कहा जाता है। एक वृक्ष का ग्रहण करने से तजातीय (वृक्ष जातीय) सभी वृक्षों - वनस्पतियों अर्थात् अग्रप्रलम्ब और मूलप्रलम्ब से वनस्पति के दसों भेदों (मूल से बीज तक) का ग्रहण कर लिया गया है। वृह. . . ष्य एवं टीका में भी ऐसा अर्थ किया है।
'शंका - अनेक संत-सती बृहत्कल्प सूत्र के "तालप्रलम्ब" शब्द से केले को कल्पनीय बताते हैं, इसका क्या समाधान है?
समाधान - बृहत्कल्प सूत्र के ऊपर श्रीसंघदासगणी का भाष्य उपलब्ध होता है, जो लगभग विक्रम की १३वीं शताब्दी के आस-पास हुए हैं, उस भाष्य की गाथा नं. ८४७ से ८५७ तक और आचार्य मलयगिरि की टीका में 'तालप्रलब' शब्द का और इस संबंधी पांचों सूत्रों का विस्तार से अर्थ किया है, जिसमें केले को कोई स्थान नहीं है। परन्तु झिझिरी आदि वृक्षों के मूल से लगाकर फल पर्यंत दस भेदों की 'तालप्रलंब' शब्द से ग्रहण किया है। तले भव ताल अर्थात् जो तल में होता उसे ताल कहते हैं और प्रकर्षेण लंबते इति प्रलंबम् अर्थात् वृक्ष के ऊपर विशेष प्रकार से जो लटकता है (डाली, फूल आदि की अपेक्षा फल अधिक लटकता है) उसे प्रलंब कहा है। प्रथम और अंत का ग्रहण करने से बीच के सभी भेदों का ग्रहण कर लिया गया है। वृक्ष का अंतिम उद्देश्य फल ही होता है और फल में ही बीज होता है, अन्यत्र नहीं। अतः १० भेदों में अंतिम भेद बीज का होने पर भी यहाँ फल पर्यंत कहने से मुख्यता फल की समझ कर और फल में बीज होता ही है ऐसा बताने के लिए ही यहाँ मूल से फल पर्यंत १० भेदों का ग्रहण 'तालप्रलंब से किया है। जिसकी गाथा यह है -
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