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साध्वी द्वारा श्रेष्ठ मानुषिक भोगों का निदान ।
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(इस प्रकार का निदान करने वाले) उस ऋद्धिशाली पुरुष को क्या समण या माहण को तपः संयममूलक, केवलिप्ररूपित धर्म का दोनों समय - प्रातः-सायं उपदेश देना चाहिए?
हाँ, देना चाहिए। .. क्या वह सुनता है?
नहीं ऐसा संभव नहीं है क्योंकि वह धर्मश्रवण के अयोग्य होता है। वह महातृष्णा, महारंभ, महापरिग्रह एवं अधर्म में आसक्त होता है यावत् दक्षिणदिशावर्ती नरक में नैरयिक होता है। आगामी भव में दुर्लभबोधि होता है - उसे सम्यक्त्व प्राप्ति दुर्लभ होती है।
आयुष्मान् श्रमणो! उस निदान रूप शल्य का यह पापकारी फल विपाक है, जिससे वह केवलिप्ररूपित धर्म को भी सुन नहीं सकता। ... साध्वी द्वारा श्रेष्ठ मानुषिक भोगों का निदान . एवं खलु समणाउंसो ! मए धम्मे पण्णत्ते, इणमेव णिग्गंथे पावयणे जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति, जस्स णं धम्मस्स णिग्गंथी सिक्खाए उवट्टिया, विहरमाणी पुरा दिगिंछाए जाव उदिण्णकामजाया विहरेज्जा, सा य परक्कमेजा, सा य परक्कममाणी पासेज्जा - से जा इमा इत्थिया भवइ एगा एगजाया एगाभरणपिहिणा तेल्लपेला इव सुसंगोविया चेलपेला इव सुसंपरिग्गहिया रयणकरंडगसमाणा, तीसे णं अइजायमाणीए वाणिजायमाणीए वा पुरओ महं दासीदास तं चेव जाव किं भे आसगस्स सयइ? जं पासित्ता णिग्गंथी शियाणं करेइ - जइ इमस्स सुचरियस्स तवणियमसंजमबंभचेर जाव भुंजमाणी विहरामि, से(त्तं )तं साहु। एवं खलु समणाउसो ! णिग्गंथी णियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्सारो भवइ महिड्डिएसु जाव सा णं तत्थ देवे भवइ जाव भुंजमाणी विहरइ, सा णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया एएसि णं अण्णयरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाइ, सा णं तत्थ दारिया भवइ सुकुमाला जाव सुरूवा॥१९॥
तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं विण्णायपरिणयमेत्तं जोव्यणगमणुप्पत्तं पडिरूवेण सुक्केण पडिरूवस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलयंति, सा
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