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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशमं दशा dattatrutakkkkkkkkkkkkAIXXXXXXXXX (अतः वह चिन्तन करता है :-)
ऊपर देवलोक में जो देव रहते हैं - वे वहाँ अन्य देवों की देवियों को अधिगत कर कामभोगों का सेवन करते हैं, स्वयं द्वारा विकुर्वित देवियों के साथ विषय-भोग सेवन करते हैं।
- यदि मेरे द्वारा आचरित तप, नियम का कोई फल हो यावत् एतद्विषयक वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् मैं भी आगामी भव में इन दिव्य भोगों का भोग करता हुआ स्थित रहूँ, यह मेरे लिए श्रेष्ठ होगा।
आयुष्मान् श्रमणो! यदि साधु-साध्वी इस प्रकार का निदान कर उसका आलोचन, प्रतिक्रमण किए बिना कालधर्म को प्राप्त हो जाते हैं तो किसी एक देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न होते हैं। वह अत्यंत ऋद्धिशाली, द्युतिशाली यावत् अत्यधिक दीप्तिशाली होता है। वहाँ अन्य देवों की देवियों, स्वविकुर्वित देवियों के साथ यावत् काम भोगों का सेवन करता है इत्यादि वर्णन पूर्ववत् (उपरोक्तानुसार) है। उस देवलोक से आयुक्षय, भवक्षय एवं स्थितिक्षय होने पर च्यवन कर यावत् पुरुष रूप में उत्पन्न होता है यावत् दास-दासी उससे पूछते हैं कि आपके मुख को कौनसे पदार्थ अच्छे लगते हैं? ____इस प्रकार के (ऋद्धिशाली, सुखवैभव सम्पन्न) पुरुष को तथारूप समण-माहण द्वारा यावत् धर्म कहना चाहिए?
हाँ, कहना चाहिए। क्या वह (समण-माहण प्रतिपादित) धर्म पर श्रद्धा, प्रतीति या रुचि रखता है?
नहीं, यह संभव नहीं है क्योंकि वह अभवी - धर्म सुनने के अयोग्य होता है, अतः श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं रख सकता। वह महातृष्णावान् यावत् दक्षिणवर्ती नरकगामी होता है और आगामी भव में दुर्लभबोधि होता है।
__ आयुष्मान् श्रमणो! उस निदान का इस प्रकार का पापरूप फल होता है कि वह केवलिप्रवर्तित (प्रतिपादित) धर्म में न श्रद्धा कर सकता है, न प्रतीति कर सकता है और न रुचि ही रख पाता है।
देवलोक में स्वदेवी भोगैषणा निदान एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते तं चेव, से य परक्कमेजा,...परक्कममाणे माणुस्सएसु कामभोगेसु णिव्वेयं गच्छेज्जा, माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा अणितिया
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