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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा
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य परक्कममाणे पासिज्जा-...इमा इत्थिया भवइ एगा एगजाया जाव किं ते आसगस्स सयइ? जं पासित्ता णिग्गंथे णियाणं करेइ - दुक्खं खलु पुमत्तणए, जे इमे उग्गपुत्ता महामाया भोगपुत्ता महामाउया एएसि णं अण्णयरेसु उच्चावएसु महासमरसंगामेसु उच्चावयाइं सत्थाइं उ (रं) रसि चेव पडिसंवेदेति, तं दुःखं खलु पुमत्तणए इत्थि ( त्तणयं ) त्तं साहु, जइ इमस्स सुचरियस्स तवणियमसंजमबंभचेरवासस्स. फलवित्तिविसेसे अत्थि वयमवि आगमेस्साणं इमेयारूवाई उरालाई इत्थिभोगाई भुंजिस्सामो, से तं साहु । एवं खलु समणाउसो ! णिग्गंथे णियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कंते जाव अपडिवज्जित्ता कालमासे कालं किंच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवं ....., से णं तत्थ देवे भवइ महिड्डिए जाव विहरड़, सेताओ देवलगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं जाव अणंतरं चयं चइत्ता अण्णयरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाइ जाव तेणं तं दारियं जाव भारियत्ताए दलयंति, साणं तस्स भारिया भवइ एगा एगजाया जाव तहेव सव्वं भाणियव्वं, तीसे णं अइजायमाणीए वाणिज्जायमाणी वा जाव किं ते आसगस्स सयइ ? ॥ २२ ॥
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तीसे णं तहप्पगाराए इत्थियाए तहारूवे समणे वा माहणे वा० धम्मं आइक्खेज्जा ? हंता! आइक्खेज्जा, सा णं पडिसुणेज्जा ? णो इणट्ठे समट्ठे, अभविया णं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए, सा य भवइ महिच्छा जाव दाहिणगामिए णेरइए आगमेस्साणं दुल्लभबोहिया यावि भवइ, एवं खलु समणाउसो ! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावए फलविवागे जंणो संचाएइ केवलिपण्णत्तं धम्मं पडिसुणित्तए ॥ २३ ॥
कठिन शब्दार्थ - पुमत्तणए पुरुषत्व, उच्चावएसु - छोटे बड़े, महासमरसंगामेसुमहासंग्रामों एवं युद्धों में, सत्थाई - शस्त्र, , उरंसि - छाती पर, पडिसंवेदेति पीड़ित होते हैं । भावार्थ - आयुष्मान् श्रमणो! मैंने जिस धर्म का प्रतिपादन किया है, वही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है यावत् सभी जीव इसमें स्थित रहते हुए सभी दुःखों का अंत करते हैं।
इस धर्म की ग्रहण आसेवन रूप साधना में समुद्यत साधु जब भूख प्यास सहन करता है यावत् पराक्रमपूर्वक संयम मार्ग में स्थित रहते हुए यावत् जब वह किसी स्त्री को देखता है, जो अपने पति की एकमात्र प्राणप्रिया है यावत् नौकर-चाकर उससे पूछते रहते हैं
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