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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - नवम दशा wittaritraditattituttiMAAAAAAAAAMAkakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
जो स्वामी अथवा ग्रामवासियों द्वारा अनधिकारी - अयोग्य होते हुए भी अधिकारी (अधिकार संपन्न) बनाया गया हो तथा पूर्व में संपत्ति हीन हो, वह(उस स्थान पर आकर) अतुल संपत्ति का मालिक हो गया हो, वह ईर्ष्णदोष युक्त और कलुषित - पापपूर्ण चित्त से अपने उपकर्ताओं के लाभ में अन्तराय करता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है॥१४॥
जिस प्रकार सर्पिणी अण्डे खा जाती है, उसी प्रकार जो अपने पालक, सेनापति तथा । कलाचार्य या धर्माचार्य का हनन करता है, वह महामोहनीय कर्म संचीर्ण करता है॥१५॥ .
जो राष्ट्र के नायक - शासक, गाँव के अधिपति तथा राज्यसम्मानित, परोपकार परायणता . के कारण यशस्वी श्रेष्ठी की हत्या करता है, वह महामोह बंध का उपार्जन करता है॥१६॥ ___जो विपुल जनसमुदाय के नायक को तथा समुद्रगत (दीव)द्वीप की तरह आश्रय दाता अथवा अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले को तथा प्राणियों के त्राता रक्षक का वध करता है, वह महामोहनीय कर्माबद्ध होता है॥१७॥
धर्म साधना हेतु उत्साहित, सर्वसावद्ययोग विरतिमूलक प्रव्रज्या युक्त संयमांराधक, उत्कृष्ट तपश्चरणशील को श्रुतचारित्र रूप धर्म से जो च्युत - पतित करता है, वह महामोहनीय कर्म का बंधन करता है॥१८॥ _जो अज्ञानी अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन समुपेत जिनेन्द्र देव का अवर्णवाद - निन्दा करता है, उन्हें असर्वज्ञ के रूप में दुर्भाषित करता है, वह महामोहनीय कर्म को उपार्जित करता है॥१९॥
जो दुरात्मा न्याय युक्ति सम्मत सम्यग् दर्शन ज्ञान, चारित्र रूप मोक्ष मार्ग की निन्दा करता हुआ बहुत से लोगों को उनसे विपरिणमित करता है - पथभ्रष्ट करता है, वह महामोह कर्म का बंध करता है ॥२०॥ ____ आचार्य एवं उपाध्याय से जो श्रुत एवं आचार ग्रहण करता है तथा उनकी निन्दा (गर्हा) करता है, वह अज्ञानी महामोहनीय कर्म से आबद्ध होता है ॥२१॥
जो आचार्य तथा उपाध्याय को अपनी सेवा द्वारा परितृप्त - संतुष्ट नहीं कर पाता, उनका सत्कार-सम्मान नहीं करता हुआ अभिमान में धुत्त रहता है (अहमन्यवादी), वह महामोहनीय कर्म का संचीर्ण करता है ॥२२॥
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