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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - दशम दशा ★★★★★★★kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk
भावार्थ - (श्रेणिक राजा और महारानी चेलणा को देखकर) वहाँ उपस्थित कुछ साधु-साध्वियों के मन में इस प्रकार का मानसिक उद्वेलन यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ - अहो! कितने आश्चर्य की बात है, राजा श्रेणिक.महान् ऋद्धिशाली यावत् अत्यन्त सुखसंपन्न हैं, जो स्नान, मंगलोपचार, दुःस्वप्न निरोधनार्थ प्रायश्चित्तादि कर सभी अलंकारों से विभूषित होकर महारानी चेलणादेवी के साथ मनुष्य जीवन के उत्तमोत्तम भोग भोगता हुआ रह रहा है। हमने देवलोक में देवों को देखा नहीं है। यह साक्षात् देवस्वरूप है। यदि हमारे द्वारा सम्यक् रूप में आचरित, तप, नियम, ब्रह्मचर्य एवं त्रिगुप्तिमय चर्या का फल विशेष हो तो हम भी भविष्य में इसी प्रकार के मनुष्य जीवन संबंधी उत्तम भोगों को भोगें। वह हमारे लिए
समीचीन - उत्तम होगा। - अहो! यह महारानी चेलणा महनीया ऋद्धिशालिनी यावत् विपुल सुख सम्पन्ना है। यह स्नान, मंगलोपचार, प्रायश्चित्तादि कर यावत् सभी अलंकारों से विभूषित होती हुई राजा श्रेणिक के साथ मानुषिक जीवन संबंधी श्रेष्ठ भोग भोगती है। यह साक्षात् देवी स्वरूपा है।
हमारे द्वारा सम्यक् रूप में आचरित तप, विनय, ब्रह्मचर्य एवं त्रिगुप्तिमय चर्या का यदि कोई फलविशेष हो तो हम भी आगामी (भविष्यवर्ती) जीवन में इसी प्रकार के मनुष्य जीवन संबंधी उत्तम भोगों को भोगें। यह हमारे लिए समीचीन - श्रेष्ठ होगा।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उन बहुत से निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थिनियों को संबोधित कर इस प्रकार कहा - आर्यों! राजा श्रेणिक और महारानी चेलणा को देखकर तुम्हारे मन में इस प्रकार का विचारोद्वेलन यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ - अहो! राजा श्रेणिक महान् ऋद्धिशाली है यावत् हमको (साधुओं को) भी भवान्तर में वैसा भोग प्राप्त हो, तो हमारे लिए बहुत अच्छा हो।
इसी प्रकार अरे! महारानी चेलणा अत्यन्त ऋद्धिशालिनी, सुखसम्पन्ना तथा सुन्दर है यावत् हमको (साध्वियों को) भी आगामी भव में वैसा उत्तम भोग प्राप्त हो, तो हमारे लिए बहुत अच्छा (समीचीन) हो।
आर्यों! जो मैंने कहा, वैसा ही है ? भगवन् ! हाँ, ऐसा ही है।
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