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दुष्ट प्राणियों का उपद्रव : निर्भीकता
गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, अह पुण एवं जाणेज्जा ससरक्खे सेअत्ताए वा जल्लत्ताए वा मलत्ताए वा पंकत्ताए वा विद्धत्थे से कप्पइं गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ १६ ॥ कठिन शब्दार्थ - ससरक्खेणं - रजसहित, पुण- पुनः, जाणेज्जा - जाने, सेअत्ताएस्वेद से - पसीने से, जल्लत्ताए शरीर का मैल, पंकत्ताए पंक रूपता । भावार्थ - मासिकी भिक्षुप्रतिमा समायुक्त अनगार को सचित्त रजयुक्त देह से भक्त - पान हेतु निकलना या गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होना नहीं कल्पता । यदि वह जाने कि उसके शरीर पर लगा सचित्त रज पसीने, जमे हुए मल या पंक के रूप में परिणत हो गई हो, अचित्त हो गई हो तो वह गृहस्थ के यहाँ आहार- पानी हेतु जाए या प्रवेश करे । हाथ आदि धोने का निषेध
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स णो कप्पइ सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा पायाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा मुहं वा उच्छोलित्तए वा पधोइत्तए वा, णण्णत्थ लेवालेवेण वा भत्तमासेण वा ॥ १७ ॥
कठिन शब्दार्थ - सीओदगवियडेण - अचित्त शीतल जल से, उसिणोदग - गर्म जल, अच्छीणि - नेत्र, उच्छोलित्तए - मुँह पर जल छिड़कना, पधोइत्तए - बार-बार धोना, गणत्थ - इसको छोड़कर, लेवालेवेण लिप्त अन्नादि का हटाना, भत्तमासेण भक्तास्येन - भोजन से लिप्त मुख को ।
भावार्थ- मासिक प्रतिमाराधक अनगार को अचित्त ठण्डे जल से या अचित्त गर्म जल से हाथ, पैर, दाँत, नेत्र, मुँह को एक बार या बार-बार धोना नहीं कल्पता किन्तु अन्न आदि से लिप्त शरीरावयव या भोजन आदि से लिप्त मुख आदि का धोना कल्पता है।
दुष्ट प्राणियों का उपद्रव निर्भीकता
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मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स णो कप्पइ आसस्स वा हत्थिस्स वा गोणस्स वा महिसस्स वा कोलसुणगस्स वा सुणस्स वा वग्घस्सं वा दुट्ठस्स वा आवयमाणस्स पयमंवि पच्चोसक्कित्तए, अदुटुस्स आवयमाणस्स कप्पइ जुगमित्तं पच्चोसक्कित्तए॥ १८॥
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