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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र
सचित्त पृथ्वी के निकट निद्रा-निषेध
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स णो से कप्पड़ अणंतरहियाए पुढवीए णिद्दाइत्तए वा पयलाइत्तए वा, केवली बूया आयाणमेयं, से तत्थ णिद्दायमाणे वा पयलायमाणे वा हत्थेहिं भूमिं परामुसेज्जा, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए वाणिक्खमित्त वा ।
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सप्तम दशा
कठिन शब्दार्थ - अणंतरहियाए अन्तर रहित निकट, णिद्दाइत्तए - निद्रा लेना,
पयलाइत्तए - - प्रचला संज्ञक अल्प निद्रा युक्त होना कर्म बंध, परामसेज्जा - स्पर्श हो जाय, ठाइत्तए
ऊंघना, बूया- कहा है, आयाणमेयंस्थित होवे ।
भावार्थ - मासिकी भिक्षु प्रतिमा के आराधक अनगार के लिए सचित्त पृथ्वी के निकट नींद लेना या प्रचला निद्रायुक्त होना ऊंघना नहीं कल्पता । केवली भगवान् ने निरूपित किया है कि यह आदान - कर्म बंध का हेतु है। वहाँ नींद लेते हुए या ऊँघते हुए भूमि का स्पर्श आशंकित है। इसलिए यथाविधि - साधु-मर्यादा के अनुरूप जहाँ ठहरना समुचित हो, वहीं ठहरे, विहार करे ।
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मलावरोध निषेध
उच्चारपासवणेणं उव्वाहिज्जा णो से कप्पइ उगिहित्तए [ वा ], कप्पइ से पुव्वपडिलेहिए थंडिले उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, तमेव उवस्सयं आगम्म अहाविहि ठाणं ठाइत्त ॥ १५ ॥
कठिन शब्दार्थ - उच्चारपासवणेणं - उच्चारप्रस्रवण मल-मूत्र की, उव्वाहिज्जा बाधा उत्पन्न हो जाए - शंका हो जाए, उगिरिहत्तर - अवरोध करना प्रतिरोध करना, परिट्ठवित्त - उत्सर्ग करे, आगम्म
आकर ।
भावार्थ - प्रतिमाधारी अनगार के मल-मूत्र - त्याग की शंका हो जाए तो उसे रोकना नहीं कल्पता। पूर्व प्रतिलेखित स्थंडिल भूमि पर उसका उत्सर्ग करना कल्पता है । तदनंतर अपने उपाश्रय में आकर यथाविधि अवस्थित हो जाए ।
सचित्त देह से गोचरी जाने का निषेध
मासयं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स णो कप्पइ ससरक्खेणं कारणं
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