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अट्ठमा दसा - आष्टम दशा
पर्युषणा कल्प तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था, तंजहाहत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कंते १ हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए २ हत्थुत्तराहिं जाए ३ हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ४ हत्थुत्तराहिं अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे ५ साइणा परिणिव्वुए भगवं जाव भुज्जो भुजो उवदंसेइ॥१॥त्तिबेमि॥
___ . ॥इति पज्जोस(णं)णा णामं अट्ठमा दसा समत्ता॥८॥
कठिन शब्दार्थ - पंचहत्थुत्तरे - पाँच हस्तोत्तर - उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, चुए - च्यवन किया, चइत्ता - च्यव कर, गब्भं - गर्भ, वक्कंते - व्यवक्रान्त हुए - प्रविष्ट हुए, गब्भाओगर्भ से, साहरिए - संहृत हुए - आनीत हुए या लाए गए, जाए - जन्मे, मुंडे - मुण्डित हुए, भवित्ता - होकर, अगाराओ - घर से - गृही जीवन से, अणगारियं - अनगारिता - गृह त्याग - मुनि जीवन, पव्वइए - प्रव्रजित हुए - दीक्षित हुए, अणंते - अन्त रहित, अणुत्तरे - अनुत्तर - सर्वश्रेष्ठ, णिव्वाघाए - निर्व्याघात - विनाश रहित, णिरावरणे - आवरण शून्य, कसिणे - कृत्स्न - समस्त, पडिपुण्णे - प्रतिपूर्ण - सम्पूर्ण, केवलवरणाणदसणे - उत्तम या प्रधान केवल ज्ञान और केवल दर्शन, समुप्पण्णे - उत्पन्न हुए, साइणा - स्वाति नक्षत्र में, परिणिव्वुए - निर्वाण प्राप्त किया, भुजो - पुनः, उवदंसेइउपदर्शित करता है - कथन करता है, बेमि - बोलता हूँ - कहता हूँ, पज्जोसण - पर्युषणा।
भावार्थ - उस काल, उस समय, श्रमण भगवान् महावीर के पांच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। भगवान् उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यव कर माता के गर्भ में व्यवक्रान्त हुए - आए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् का एक गर्भ से दूसरे गर्भ में संहरण - आनयन हुआ - एक गर्भ से दूसरे गर्भ में वे लाए गए, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् का जन्म हुआ, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् मुण्डित होकर गृही धर्म से मुनि धर्म में प्रव्रजित - दीक्षित हुए, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान् को अनंत, सर्वोत्कृष्ट, नाशरहित,
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