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णवमा दसा - नवम दशा
महामोहनीय कर्म-बन्ध के स्थान तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा णामं णयरी होत्था, वण्णओ। पुण्णभहे णाम चेइए, वण्णओ। कोणियराया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया॥१॥ __भावार्थ - उस काल, उस समय चम्पा नामक नगरी थी। औपपातिक आदि से उसका वर्णन संग्राह्य है। पूर्णभद्र नामक चैत्य था। एतद्विषयक वर्णन पूर्ववत् योजनीय है। कोणिक नामक राजा था, धारिणी नामक उसकी पटरानी थी। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का वहाँ पदार्पण हुआ। दर्शन एवं धर्मदेशना श्रवण हेतु परिषद् - लोग अपने-अपने स्थानों से निकलकर वहाँ पहुँचे। भगवान् ने धर्मदेशना दी। लोग श्रवण कर वापस लौट गए। __ अज्जो ! त्ति समणे भगवं महावीरे बहवे णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी-"एवं खलु अजो ! तीसं मोहणिजठाणाई जाई इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं अभिक्खणं आ[यारे ]यरमाणे वा समायरमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्म पकरेइ, तंजहा
जे (यावि) केइ तसे पाणे, वारिमझे विगाहिया। उदएणक्कम्म मारे(ई)इ, महामोहं पकुव्वइ॥२॥ पाणिणा संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं। अंतोणदंतं मारेइ, महामोहं पकुव्वइ ॥३॥ जायतेयं समारब्भ, बहुं ओरंभिया जणं। अंतो धूमेण मारेइ, महामोहं पकुव्वइ॥४॥ सीसम्मि जो (जे) पहणइ, उत्तमंगम्मि चेयसा। विभज मत्थयं फाले, महामोहं पकुव्वइ॥५॥ सीसं वेढेण जे केइ, आवेढेइ अभिक्खणं। तिव्वासुभसमायारे, महामोहं पकुव्वइ॥६॥
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