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पर्युषणा कल्प
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आवरण रहित, समग्र, परिपूर्ण उत्तम केवल ज्ञान एवं केवल दर्शन उत्पन्न हुआ। स्वाति नक्षत्र में भगवान् ने निर्वाण प्राप्त किया यावत् भगवान् ने पुनः-पुनः स्पष्ट रूप में उपदर्शित किया। मैं (सुधर्मा), जैसा मैंने भगवान् से सुना कहता हूँ। . इस प्रकार पर्युषणा नामक आठवीं दशा संपन्न होती है।
विवेचन - दशाश्रुतस्कन्ध मूलतः आचार प्रधान आगम है। ठाणांग आदि आगमों में भी इसका नाम आचारदशा प्राप्त होता है।
संक्षिप्त रूप में वर्णित इस आठवीं दशा में श्रमण भगवान् महावीर के पंचकल्याणकों का संकेतात्मक वर्णन प्राप्त होने से यह आगमिक अंश चरणकरणानुयोग के स्थान पर धर्मकथानुयोग की प्रतीति कराता है। . इस दशा में प्रभु महावीर के पंचकल्याणकों का जो वर्णन प्राप्त होता है वह उचित ही है क्योंकि तीर्थंकरों का जीवन विशुद्ध, निर्मल एवं आचारमय होता है। जिसके विवेचन से आचार के प्रति श्रद्धा एवं रुचि परिपुष्ट होती है इसके अतिरिक्त यहाँ विस्तृत वर्णन का 'जाव' पद के अन्दर समावेश करते हुए पंचकल्याणकों का संकेतमात्र से ही उल्लेख हुआ है। ___इस आठवीं दशा का नाम अन्य आगमों में (ठाणांग आदि) 'पञ्जुसणाकप्प' प्राप्त होता है। इस पाठ के अन्त में आए ‘पञ्जोसणा' शब्द से इसकी पुष्टि होती है। पर्युषणाकल्प का तात्पर्य वर्षा ऋतु में चार महीने एक स्थान पर प्रवास करने से है। यहाँ चातुर्मासिक समाचारी का वर्णन होने तथा चातुर्मास्य में पर्युषण पर्व का अत्यधिक महत्त्व होने से ही एतद्विषयक वर्णन को पर्युषणाकल्प से अभिहित किया गया है।
वस्तुतः कल्पसूत्र भी इसी दशा का अंश है।
आचार्य भद्रबाहु विरचित नियुक्ति की सातवीं गाथा में 'पञ्जुसणाकप्प' शब्द का उल्लेख हुआ है। यहाँ उल्लिखित 'कप्प' शब्द से कल्प सूत्र के साथ इसका संबंध घटित होना संभावित है। अतः नियुक्तिकार के समक्ष भी शायद कल्प सूत्र का सम्पूर्ण वर्णन रहा हो? .
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॥ दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र की आठवीं दशा समाप्त॥
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