________________
८७
अहोरात्रिकी भिक्षुप्रतिमा kkkkkkkkkkkkkkkkkakkartadakatariakatarikakkakkakakakakakakakak को ऊँचा रखते हुए वक्रकाष्ठ की तरह स्थित रहना, उक्कुडुयस्स - उकडु बैठना - भूमि पर पुत टिकाए बिना बैठना। . भावार्थ - इसी प्रकार दूसरी सप्तरात्रिदिवसीय (नवमी) भिक्षु प्रतिमा का भी निरूपण है। विशेषता यह है कि उसमें दण्डासन, लकुटासन या उत्कुटुकासन में स्थित रहे। अवशिष्ट वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् वह जिनाज्ञा के अनुसार प्रतिमा का अनुपालयिता होता है।
- तृतीय सप्तअहोरात्रिकी प्रतिमा एवं तच्चा सत्तराइंदियावि, णवरं गोदोहियासणियस्स वा वीरासणियस्स वा अंबखुज्जासणियस्स वा ठाणं ठाइत्तए सेसं तं चेव जाव अणुपालित्ता भवइ॥१०॥२९॥
कठिन शब्दार्थ - गोदोहियासणियस्स - गोदोहिकासन - गाय दुहने की स्थिति में अवस्थित होना, वीरासणियस्स - वीरासन में - कोई व्यक्ति सिंहासनासीन हो और अन्य पुरुष उसके नीचे से आसन निकाल ले तब भी आसनस्थ व्यक्ति उसी स्थिति में, अविचल बैठा रहे, वैसा आसन, अंबुखुजासणियस्स - आम्रकुब्जासन - आम्रफल की तरह वक्राकार स्थित होना। - भावार्थ - इसी प्रकार तीसरी सप्तरात्रिदिवा (दशमी) भिक्षु प्रतिमा का वर्णन भी ज्ञातव्य है। विशेषता यह है - इस प्रतिमा की आराधना में साधक गोदोहिकासन, वीरासन अथवा आम्रकुब्जासन में स्थित रहे। अवशिष्ट वर्णन पूर्ववत् है यावत् वह अरहंत की आज्ञा के अनुसार प्रतिमा का परिपालयिता होता है।
. अहोरात्रिकी भिक्षुप्रतिमा एवं अहोराइंदियावि, णवरं छटेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं दोवि पाए साहट्ट वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए, सेसं तं चेव जाव अणुपालित्ता भवइ॥११॥३०॥
कठिन शब्दार्थ - ईसिं - कुछ, साहट्ट - मिलाकर, वग्घारियपाणिस्स - लम्बे हाथ किए हुए।
भावार्थ - अहोरात्रिकी भिक्षु प्रतिमा भी इसी प्रकार है। अन्तर यह है कि इसमें आराधक दो दिवसीय उपवास - बेले के साथ ग्राम यावत् राजधानी के बाहर जाकर दोनों पैरों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org