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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - सप्तम दशा Addkadattatrakattarakkakkkkkkkkkkkkkkkk★★★★★★★★★★★★★
कठिन शब्दार्थ - आसस्स - अश्व का, गोणस्स - बैल का, कोलसुणगस्स - जंगली सूअर का, सुणस्स - कुत्ते का, वग्घस्स - व्याघ्र का, दुद्रुस्स - दुष्ट - घातक प्राणी का, आवयमाणस्स - आते हुए, पच्चोसक्कित्तए - आगे-पीछे कदम हटाना, जुगमित्तं - युग्यमात्र - चार हाथ आगे या पीछे हटना।
भावार्थ - मासिकी भिक्षु प्रतिमाधारी अनगार के सामने घोड़ा, हाथी, बैल, भैंसा, जंगली सूअर, कुत्ता या व्याघ्र (बाघ) आदि दुष्ट प्राणी सामने आते हों तो उसे एक कदम भी अपने स्थान से आगे या पीछे हटना नहीं कल्पता। यदि कोई अदुष्ट-अहानिकर प्राणी सामने आते हों (सहज भाव से आ रहे हों) तो उन्हें मार्ग देने की दृष्टि से युग्यमात्र - चार हाथ आगे या पीछे हटना कल्पता है।
शीतोष्ण परीषह सहिष्णुता मासियं णं भिक्खुपडिम पडिवण्णस्स अणगारस्स णो कप्पइ छायाओ सीयंति उण्हं एत्तए, उण्हाओ उण्हंति छायं एत्तए। जं जत्थ जया सिया तं तत्थ तया अहियासए॥१९॥ ___कठिन शब्दार्थ - छायाओ - छाया से, सीयं - शीत, उण्हं - धूप में, एत्तए - आना, अहियासए - सहन करे। ___ भावार्थ - मासिकी भिक्षुप्रतिमा के आराधक अनगार के लिए "यहाँ ठण्डक है" यों सोचकर छाया में जाना और गर्म स्थान से "यहाँ गर्मी है" - यों सोचकर छाया में आना नहीं कल्पता। जहाँ जिस स्थान पर शीत या उष्ण, जैसा हो, उसे समभाव से सहन करना विहित है। . .
मासिकी भिक्षु प्रतिमा की सम्यक् सम्पन्नता एवं खलु मासियं भिक्खुपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं अहासम्म कारण फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहइत्ता आणाए अणुपा(ले)लित्ता भवइ॥१॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - अहासुत्तं - सूत्रानुरूप - सूत्र में हुए प्रतिपादन के अनुरूप, अहाकप्पंयथाकल्प - स्थविरादि कल्पनानुसार, अहामग्गं - यथामार्ग - ज्ञान, दर्शन, चारित्रात्मक
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